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लघुतत्त्वस्फोट में कुल 627 श्लोक हैं। इन श्लोकों का 25 पंचविंशतिकाओं में विभाजन किया गया है। प्रत्येक पंचविंशतिका में 25-25 श्लोक हैं। इस ग्रन्थ की प्रथम स्तुति में चौबीस तीर्थकरों की 24 स्तुलियाँ हैं। उदाहरणार्थ प्रथम आदिनाथ (ऋषभदेव) तीर्थकर की स्तुति का उद्धरण इस प्रकार है
स्वयम्भूयं मह इहोच्छलदच्छमाण्डे, येनादिदेवभगवानमवत् स्वयम्भूः । ॐ भूर्भुवः प्रभृतिसन्मननैकरूप,
मात्मप्रमातृ परमात न मातृ मातृ।' तात्पर्य-प्रथमतीर्थकर आदिनाथ स्वामी की स्तुति में आ. अमृतचन्द्रसूरि ने उस स्वायम्भुव = स्वयं व्यक्त होनेवाली ज्ञान ज्योति की ही स्तुति की है, जिससे आदिदेव भगवान् स्वयम्भू हो गये। जो ज्ञानज्योति, आदिशान्तिमन्त्र के द्वारा सम्यक् अद्वितीय चिन्तन रूप हैं, जो तेज स्व-पर-प्रकाशक हैं, समस्त पदार्थों का ज्ञायक है। नामावली स्तोत्र, उपसंहार और स्तुति का फल
ये भाषयन्त्यविकलार्थ जिनानां नामावलीममृतचन्द्रचिदेक पीताम् । विश्वं पिबन्ति सकलं किकलीलयैव
पीयन्त एव न कदाचन ले परेण॥' इस प्रकार वीतराग सर्वज्ञ जिनेन्द्रों की स्तुति का फल स्वयं वीतराग एवं सर्वज्ञ बन जाना है। इस प्रथम स्तोत्र में ऋषभ आदि 24 तीर्थंकरों के स्तोत्र को 'नामावली-स्तोत्र' कहा गया है।
श्रीसमन्तभद्रभारती स्तोत्र
'उभयकविताविलास' की उपाधि से विभूषित कवि नागराज ने यह स्तोत्र शक संवत् 1253 (सन् 1332) में आचार्य समन्तभद्र के ग्रन्थों, शास्त्रार्थों, भाषणों, प्रवचनों और विद्वत्ता के दिग्दर्शन में रचा है।
समन्तभद्रभारतीस्तोत्र-पंचचामरवृत्तम्
1. आ. अमृतघन्द्र : ल.त. स्फो. : सं. पन्नालाल साहित्वाचार्य, प्र.-ग्रन्थ प्रकाशन समिति फलटण __ (महाराष्ट्र), सन् 198], पृ. 1, पद्य । ". तथैव, पृ. 17, पध 25 3. पण्डिताचार्य भट्टारक श्री चारुकीर्ति जी महाराज, अधिपति श्री दि. जैन पट मूडयिनी, (दक्षिण
कनाडा डिस्ट्रिक्ट) (स्वामी जी के सौजन्य से प्राप्त)
जैन पूजा-काय्य के विविध रूप :: 103