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संस्मरीमि तोष्टवीमि ननमामि भारती तंतनीमि पंपटीमि बंभणीमि तेऽमिताम् । देवराज नागराजमर्त्यराजपूजिता
श्रीसमन्तभद्रवादभासुरात्मगोचराम्॥ भाव सौन्दर्य हे समन्तभद्र! देवेन्द्र, नागेन्द्र एवं चक्रवर्ती से पूजित, समन्तभद्रसिद्धान्त से देदीप्यमान आत्मा के द्वारा परिज्ञात, आपकी अपारवाणी को मैं पुनः-पुनः स्मरण करता हूँ, पुनः-पुनः स्तवन करता हूँ, पुनः-पुनः प्रणाम करता हूँ, पुनः-पुनः विस्तृत करता हूँ, पुनः पुनः समृद्ध करता हूँ, पुनः पुनः उपदेश करता हूँ।
मातृमानमेयसिद्धिवस्तुगोचरां स्तुवे सप्तमंगसप्तनीतिगम्यतत्त्वगोचराम्। मोक्षमार्गतविपक्षभूरिधर्मगोचरा
माप्ततनगोन समन्तभन पारतीम्। प्रमाता, प्रमाण और प्रमेय की सिद्धि से पदार्थ को विषय करनेवाली, सप्तभंग, सप्तनय के द्वारा गम्य तत्त्व को जाननेवाली, मोक्षमार्ग और संसारमार्ग के महान् तत्व को ज्ञात करनेवाली, आप्त-अर्हत् द्वारा कथित तत्त्व का आलोडन करनेवाली, विश्व का कल्याण करनेवाली, विशाल समन्तभद्रवाणी का मैं स्तवन करता हूँ।
सूरिसूक्तिवन्दितामुपे यतत्त्वभाषिणी चारुकौतिभासुरामुपायतत्त्वसाधनीम् । पूर्वपक्षखण्डनप्रचण्डवागविलासिनीम् ।
संस्तुचे जगद्धितां समन्तभद्रभारतीम्॥ आचार्यों की श्रेष्ट उक्तियों से बन्दित, ग्राह्यतत्वों का कथन करनेवाली, विश्व में रमणीय कोर्ति से प्रदीप्त, मुक्ति से उपायभूततत्त्वों को सिद्ध करनेवाली, प्रतिवादियों के पूर्व पक्ष के खण्डन में प्रखर वाक्यों से विभूषित, जगत की हिमकारिणी, आचार्यसमन्तभद्र की वाणी का मैं नागराज सम्यक् स्तवन करता हूँ।
पानकेसरिप्रभावसिद्धिकारिणी स्तुवे भाष्यकारपोषितामलंकृत्तां मुनीश्वरैः । गृधपिच्छभाषितप्रकृष्टमंगलाथिका
सिद्धिसौख्यसाधी समन्तभद्रभारतीम्।। आचार्य विद्यानन्द की प्रतिभा को सिद्ध करनेवाली, 'भाष्यकार अकलंक देव के द्वारा समर्पित, पूज्यवाद आदि मुनीश्वरों के द्वारा अलंकृत, उमास्वामी के बचनों द्वारा श्रेष्ठ मंगल को सिद्ध करनेवाली, आत्मतत्त्व की सिद्धि एवं अक्षय सुख का साधन स्वरूप समन्तभद्रवाणी का मैं नागराज स्तवन करता हूँ।
M:: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन