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स्तोत्रों के पाठ करने का यथार्थ फल
स्तुत्या परं नाभिमतं हि भक्त्या, स्मृत्या प्रणत्या च ततो भजामि।
स्मरामि देवं प्रणमामि नित्यं, केनाप्युपायेन फलं हि साध्यम्।।' हे परमात्मन्! केवल स्तुति के कारण ही मनोरथ की सिद्धि नहीं होती, किन्तु भक्ति से (पूजन से). स्मति से, ध्यान से नमस्कार करने में भी इष्ट फल की सिद्धि होती है इसलिए मैं सर्वदा आपकी भक्ति करता हूँ, स्मरण करता हूँ, प्रणाम करता हूँ और ध्यान करता हूँ, कारण कि इच्छित फल को किसी भी उपाय से सिद्ध कर लेना चाहिए।
इदं स्तोत्रमनुस्मृत्य, पूतो भवति भाक्तिकः ।
यः सपाठं पठत्येनं, सः स्यात् कल्याणभाजनम्।। जो भक्तजन इस स्तोत्र का स्मरण करके पवित्र होता है तथा इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, सदा शुद्ध उच्चारण करता है, वह मानब अपने जीवन में कल्याण का पात्र होता है। ___इस प्रकार जैनदर्शन में संस्कृत के बहुसंख्यक स्तोत्र हैं। लघुतत्त्वस्फोट
अध्यात्मशैली में विरचित यह एक स्तुतिपरककाय्य ग्रन्थ है। इलका द्वितीय नाम 'शक्तिमणितकोष' अथवा 'शक्तिभणितकोष' है। 'लघुतत्वस्फोट' का अर्थ है- तत्त्वों का लघु प्रकाश अर्थात् संक्षेप में या शीघ्र, तत्त्वों का स्फोट-स्फुटन-प्रकाश जिससे होता है। 'शक्तिमणितकोष' का तात्पर्य-आत्मशक्तियों के कथन का कोष अथवा आत्मशक्ति रूपी मणियों से युक्त खजाना।
आ. अमृतचन्द्रसूरि को 'शक्तिमणितकोष' यह नाम अभीष्ट है, कारण कि उन्होंने इस नाम का उल्लेख ग्रन्थ के अन्तिम श्लोक एवं पुष्पिकावाक्य दोनों में किय
1. पूर्वकथित पुस्तक, पृ. 1523 ५. पूर्वोक्त पुस्तक, पृ. 242 5. (1) अस्पाः स्वयं रभसि गानिपीडितायाः
सविविकासरसवीचिभिरुल्लसन्त्याः ।
आस्वादयत्वपृतचन्द्रकवीन्द्र एष __ हृप्यन् बानि मणितानि मुहुः म्वशक्तः।। आ. अमृतचन्द्र : लघुतत्वस्फोट, कारिका नं. 1, 2. 289 12) इस ग्रन्थ के पुष्पिकावाक्य में भी इत्यमृतधन्द्रसूरोगां कृतिः शक्तिमणितकोषो नाम लघुतत्त्वस्फोटः
समाप्तः यह स्पष्ट निर्देश है।
102 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन