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प्राकृतभाषा में संक्षिप्त भगवान महावीर की स्तुति--
जयइ जगजीवजोणी विहाय ओ जगगुरु जगाणन्दो। जगणाही जगबन्धु जबइ जगपिया महाभयम्॥ जयइ सुयाणयभवो तित्थयसणं अपच्छिमो जयइ ।
जयइ गरु लोयाणं, जयइ महप्पा महावीरो।' सारांश-जगत् के सम्पूर्ण चराचर जीवों को जाननेवाले भगवान महावीर जो कि जगतगुरु, जगन्नाथ, जगहितैषी और अक्षयआनन्दमय हैं, उन जगतपितामह भगवान महावीर की जय हो! जय हो!! हिन्दी में संक्षिप्त तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति (स्तोत्र)
ज्ञान पूज्य है, अमर आप का, इसीलिए कहलाते बुद्ध भुवनत्रय के सुखसंवर्धक, अतः तुम्ही शंकर हो शुद्ध । मोक्षमार्ग के आद्यप्रवर्तक, अतः विधाता कहें गणेश तुम सम अवनी पर पुरुषोत्तम, और कौन होगा अखिलेश
संस्कृत में विस्तृत स्तोत्रकाव्य
भक्तामरस्तोत्र--इस स्तोत्र की रचना ई. की 7वीं शती के मध्य में श्री मानतुंगाचार्य द्वारा धारानगरी में की गयी। इसमें 48 श्लोक वसन्ततिलका छन्द में रचित हैं। इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक तगण-मगण, 2 जगण, दो अक्षर गुरु इस तरह 14 अक्षर होते हैं। इस स्तोत्र में अनेक अलंकारों के प्रयोग से श्री ऋषभदेव के विषय में भक्तिरस प्रवाहित हुआ है जो अन्तःकरण को आनन्दित करता है, शब्द सौन्दयं भी प्रभावक है। उदाहरण के लिए कुछ काव्यों का परिचय
सोऽहं तथापि तब भक्तिवशान् मुनीश कतुंस्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्यमृगी मृगेन्द्र
नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्यम्।। इस काव्य में दृष्टान्त अलंकार से भक्तजन आनन्दित हो जाते हैं।
त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजां। आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाश, सूर्यांशुभिन्नमिव शारमन्धकारम्।।
1. नाक्त पुस्तक. पृ. 47 2. कमानमार शाम्बी : भक्तामरस्वोन का हिन्दी पद्यानुवाद : सं.पं. मोहनलाल शास्त्री. जबलपुर.
श्री. सं. 203, पृ. 15
जैन पूजा-काव्य के विविध रूप :: 95