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(1) नित्य पूजा- अपने घर से लाये गये जल-चन्दन आदि अष्ट द्रव्यों के द्वारा जिन-मन्दिर में अर्हन्त आदि नव देवों का प्रतिदिन भावपूर्वक पूजन करना, अपने धन द्वारा यथाशक्ति जिन प्रतिमा, मन्दिर आदि का निर्माण कराना, शासन विधि के द्वारा भक्तिपूर्वक अपने ग्राम-घर आदि के परोपकार के लिए दान करना, जिन मन्दिर में या अपने घर में भी तीनों सन्ध्याओं में अर्हन्त आदि देवों की आराधना करना, अपने घर पर पधारे हुए आचार्य, उपाध्याय, मुनियों की पूजा करके आहार- दान आदि को करना। यह सब नित्य पूजा कहलाती है।
(2) नन्दीश्वर पूजा- कश्यप में अर्थात् काशिक- फाल्गुन- आषाढ़ मासों की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों में भव्य मानवों द्वारा जो जिनेन्द्र देव का पूजन किया जाता है जो कि नित्य पूजा से विशेष रूप से किया जाता है, नन्दीश्वर पूजा है।
( 9 ) चतुर्मुख पूजन - भक्तिपूर्वक मण्डलेश्वर महामण्डलेश्वर राजाओं के द्वारा जिनेन्द्र भगवान का जो पूजन किया जाता है, उसे चतुर्मुख पूजन कहते हैं। इस पूजन के तीन नाम प्रसिद्ध हैं - (1) सब प्राणियों के कल्याण करने के लिए यह पूजन महोत्सव के साथ किया जाता है अतः इसका नाम 'सर्वतोभद्र' प्रसिद्ध है । ( 2 ) मण्डप में चतुर्मुख प्रतिमा विराजमान करके चारों ही दिशा में राजा-महाराजा जैसे महान् व्यक्ति खड़े होकर इस पूजन को करते हैं अतः इसका नाम 'चतुर्मुखमह' निश्चित किया गया हैं। ( 3 ) नन्दीश्वर पूजन से यह पूजन विशाल होता है अतः इसका नाम 'महामह' लोक विख्यात है। इसको राजरगण अपने देश में अखण्ड साम्राज्यपद प्राप्त करने के समय करते हैं।
(4) कल्पद्रुम पूजन - भारत क्षेत्र में षट्खण्डभूमि पर दिग्विजय प्राप्त करने के पश्चात् साम्राज्यपद का अभिषेक करते समय चक्रवर्ती के द्वारा जो जिनेन्द्र देव का पूजन महोत्सव के साथ किया जाता है, वह कल्पद्रुम पूजन कहा जाता है। इस पूजन में किमिच्छक दान किया जाता है। तुम क्या चाहते हो ! इस प्रकार के प्रश्नपूर्वक याचकों के मनोरथों को पूर्ण कर जो दान किया जाता है, उसे किमिच्छक दान कहते हैं। इसी विषय को आचार्य कल्प पण्डितप्रवर आशाधर जी ने कहा है
किमिच्छिकेन दानेन जगदाशाः प्रपूर्य यः । चक्रिभिः क्रियते सोऽर्हद्रयज्ञः कल्पद्रुमो मतः॥ '
( 5 ) ऐन्द्रध्वज पूजन- अर्हन्त जिनेन्द्र देव का जो पूजन इन्द्र आदिक देवों के द्वारा समारोह के साथ किया जाता है वह 'ऐन्द्रध्वजपूजन' कहा गया है। इन पाँच पूजाओं को यथा समय गृहस्थ श्रावक या देवगण करते हैं। इन पंच पूजनों
1. सागारधर्मात अ. 2, पद्म 28
जैन पूजा काव्य का उदभव और विकास :: 87