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अध्ययन कराते हैं, शंका समाधान करते हैं, तत्त्वोपदेश देने में दक्ष, बहुभाषाविज्ञ होने से प्रभावक वक्तृत्व कला में प्रवीण होते हैं और मुनियों के सम्पूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हैं। श्रुतज्ञान के यथासम्भव द्वादश अंगों का इनको ज्ञान होता है। इन अंग शास्त्रों का स्वयं अध्ययन करते और शिष्यों को कराते हैं। बारह अंगों के नाम भेद-प्रभेद–(1) आचारांग शास्त्र ( साधुओं के आधार का वर्णन) (2) सूत्रकृतांगशास्त्र (ज्ञान विनय, व्यवहार धर्म का वर्णन), (s) स्थानांगशास्त्र (द्रव्यों के भेद-प्रभेदों का वर्णन), (4) समवायांगशास्त्र (द्रव्यों के सामान्य गुणों का वर्णन ), ( 5 ) व्याख्या प्रज्ञप्ति शास्त्र (धर्म के प्रश्नों का समाधान (t) शर्मा (तीर्थकरों का माहात्म्य, महापुरुषों की कथा आदि), (7) उपासकाध्ययनांगशास्त्र ( श्रावकों के व्रत नियम मन्त्र आदि का वर्णन ), ( 8 ) अन्तःकृत् दशांग शास्त्र (तीर्थकरों के तीर्थकाल में दशदशमुनियों की तपस्या और मुक्ति का वर्णन), (9) अनुत्तरोपपादक दशांगशास्त्र (तीर्थकरों के तीर्थकाल में हुए मुनियों की तपस्या का दिव्यवर्णन), ( 10 ) प्रश्नव्याकरणांगशास्त्र में लौकिक प्रश्नोत्तर तथा चार कथाओं का वर्णन ), ( 11 ) विपाकसूत्रशास्त्र ( पुण्यपापरूप कर्मों के फल का वर्णन ), ( 12 ) दृष्टि प्रवाद - शास्त्र ( तीन सौ त्रेसठ मतों के तत्वों का वर्णन तथा उनका खण्डन ) 1
यारहवें दृष्टि प्रवाद अंग शास्त्र के मुख्य पाँच भेद हैं- (1) परिकर्मशास्त्र (गणित के करणसूत्रों का वर्णन ), ( 2 ) सूत्रशास्त्र (363 मतों के सिद्धान्त और उनका निराकरण), (s) प्रथमानुयोगशास्त्र ( त्रेसठ शलाका (गणनीय) महापुरुषों के चरित्र का चित्रण), (4) चूलिकाशास्त्र के पाँच भेद हैं- 1. जलगता (जलविद्या तथा अग्निविद्या के मन्त्रों का वर्णन ), 2. स्थलगता शास्त्र (मेरु कुलाचल हिमालय भूमि आदि में प्रवेश तथा शीघ्रगमन आदि के मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन), 3. मायागताशास्त्र ( इन्द्रजाल सम्बन्धी मन्त्र तन्त्रों का वर्णन ), 1. आकाशगता ( आकाश में गमन आदि के मन्त्र तन्त्रों का वर्णन ), 5. रूपगता ( सिंह, गज आदि के रूपरचना के मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन) | (5) दृष्टिप्रवाद अंग के अन्तिम भेद 'पूर्वगत' के चौदह प्रकार होते हैं1. उत्पाद पूर्व शास्त्र ( द्रव्यों के गुण, पर्याय और संयोगीधर्मो का वर्णन)। 2. अग्रायणी पूर्वशास्त्र ( सुनय, दुर्नय, छह द्रव्य, सात तत्त्वों आदि का वर्णन ) ।
3. बीर्यानुवाद (आत्मवीर्य, परवीर्य, गुणवीर्य आदि अनेक बलों का वर्णन ) । 4. अस्तिनास्तिप्रवाद शास्त्र ( अनेकान्तवाद - स्याद्वाद का वर्णन ) ।
5. ज्ञान प्रवाद शास्त्र ( प्रमाणज्ञान, मिथ्याज्ञान का पूर्ण वर्णन ) ।
6. सत्यप्रवाद शास्त्र (शब्द ब्रह्म तथा भाषा विज्ञान की व्याख्या) । 7. आत्मप्रवाद (स्याद्वाद रीति से आत्मा का वर्णन ) ।
से. कर्म प्रयाद शास्त्र (ज्ञानावरण आदि कर्मों की अनेक दशा का वर्णन) 1 9. प्रत्याख्यानशास्त्र ( नाम स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि का वर्णन )
566 जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन