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के साथ ही बोलते हैं ! यह चिगवली भी एक मार की पति है, निगाला मानवों पर बहुत प्रभाव होता है। वर्तमान युग में इस सिनेमा रूप मूर्ति का अधिक प्रभाव हो रहा है, बाल-वृद्ध, नर-नारी, युवक-युवती सभी इसके वशीभूत हो रहे हैं। वर्तमान में मानव, सिनेमा के इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि उन्हें भोजन न मिले तो कोई हानि नहीं, पर सिनेमा के दर्शन अवश्य होना चाहिए। यह सब चलचित्र रूपी मूर्ति का प्रभाव है।
चतुर्थ वैज्ञानिक आविष्कार-हस्तकला सम्बन्धी है, हस्तकला में विज्ञकलाकार जो सुन्दर चित्र काग़ज़ पर, पत्थर पर, मिट्टी पर, वस्त्र पर आदि परचित्रित करते हैं उनका चित्र पर यथायोग्य अत्यन्त प्रभाव मुद्रित होता है। जैसे सुन्दर वेश्या का चित्र हो तो विषय-सेवन की इच्छा होती है। द्यूत क्रीड़ा (जुआ) करनेवाले का चित्र हो तो जुआ खेलने की इच्छा होती है, हिंसक का चित्र हो तो हिंसा करने की इच्छा होती है, महाराणा प्रताप का चित्र हो शरीर में रक्त उबलने लगता है, दिगम्बर मुनिराज का चित्र देखते ही वैराग्य की भावना उछलने लगती है।
सारांश यह है कि हस्तकला के चित्र रूप मूर्ति का प्रभाव अनुभव से सिद्ध होता है।
जैनमूर्ति और मूर्ति-पूजन का ऐतिहासिक सन्दर्भ-"मोहन-जो-दड़ो से प्राप्त मुहर (खड़ियामिट्टी की मुद्रा) पर उकेरी कायोत्सर्ग मूर्ति पर यदि हम अभी विचार न करें तो भी लोहानीपुर की मौर्ययुगीन तीर्थंकर प्रतिमाएँ यह सूचित करती हैं कि इस बात की सर्वाधिक सम्भावना है कि जैनधर्म पूजा हेतु प्रतिमाओं के निर्माण में बौद्ध और ब्राह्मण धर्म से आगे था। बौद्ध या ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित धर्म की देवताओं से सम्बन्धित इतनी प्राचीन प्रतिमाएँ अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं। यद्यपि इन धर्मों की समकालीन या लगभग समकालीन यक्षमूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनकी शैली पर लोहानीपुर की मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी हैं। महावीर के समय में इस प्रकार की मूर्तियों बनाने की प्रथा थी, इसका प्रमाण नहीं मिल सका हैं। स्वयं महावीर के समकालीन वीतभयपत्तन के नृपति उद्दावन की रानी चन्दन-काष्ठ से निर्मित तीर्थकर मूर्ति की पूजा करती घीं। इस आख्यान का प्रतिरूप बुद्ध के समकालीन कौशाम्बी के उदयन सम्बन्धी आख्यान में मिलता है कि उसने इसी सामग्री से निर्मित बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की थी। यहाँ तक कि दोनों शासकों के नामों की समता भी सम्भवतः आकस्मिक न हो।"
__पंचम वैज्ञानिक आविष्कार-रेखाचित्र विषयक है। इस कला के कलाकार जैसा भावपूर्ण चित्र ऑकत करते हैं वैसा ही मानस-पटल प्रभावित होता है-देश के रेखाचित्र से देश का ज्ञान, मनुष्य के रेखा चित्र से मनुष्य का ज्ञान होता है। वर्तमान समाचार पत्रों में भावपूर्ण रेखाचित्र वा व्यंग्यचित्र बहुत मुद्रित होते हैं। उनको देखकर 1. असलानन्द घोप : जैनकरना एवं स्थापत्य-खण्ड-1, प्र.-भारतीय ज्ञानपीट नयी दिल्ली, सन 1975,
अध्याय-1. पृ. ।
जेन पूजा-काव्य का उद्भव और रिकाम :: 79