________________
10. विद्यानुवादशास्त्र (अल्पविद्या, महाविद्या, सिद्धविद्या का फल आदि का वर्णन) ।
11. कल्याणवाद शास्त्र (तीर्थकरों के कल्याणक तथा ज्योतिर्विज्ञान का वर्णन ) |
12. प्राणवाद शास्त्र आठ प्रकार के आयुर्वेद का वर्णन, दशप्राण आदि का वर्णन
13. क्रियाविशाल शास्त्र ( 72 पुरुष कला, 64 स्त्रीकला, 16 संस्कारों का चर्म ।
14. लोकविन्दुसारशास्त्र (तीन लोक का वर्णन, मुक्ति का कथन आदि) । इन 11 अंग, 14 पूर्व आदि शास्त्रों का अध्ययन यथायोग्य उपाध्याय स्वयं करते और शिष्यों को अध्ययन कराते हैं।
5. साधु परमेष्ठी की परिभाषा
मुक्ति का अन्तिम साक्षात् मार्ग चारित्र, निश्चय तथा व्यवहार के भेद से दो प्रकार का है। उस चारित्र की मनसा, वाचा, कर्मणा साधना, आत्म-सिद्धि के लिए जो महात्मा करते हैं उन्हें सार्थक नाम वाले 'साधु कहते हैं। ये सम्यग्दृष्टि तथा सम्यग्ज्ञानी होते हैं। संसार - शरीर एवं पंचेन्द्रिय के विषय भोगों से उदासीन, वस्त्ररहित, दिगम्बर मुद्रा के धारी, चौबीस प्रकार के परिग्रह से हीन, परीषह (22 प्रकार के कष्ट) तथा उपसर्ग ( अचानक उपस्थित किया गया उपद्रव) को जीतने वाले होते हैं। वे ध्यान के द्वारा कर्मकलंक को ध्वस्त करने का सदैव पुरुषार्थ करते रहते हैं। उनके 28 मुख्य गुण होते हैं। 5 महाव्रत, 5 समिति, 5 इन्द्रियविजय, 6 आवश्यक, शेष सात क्रिया विशेष + 5 + 5 + 6 +7 28 मूलगुणों का विवरण इस प्रकार है
पंच महाव्रत : ( 1 ) अहिंसा महाव्रत ( मन, वचन, काय तथा कृत कारित, अनुमति, परस्पर गुणित इन नवरीतियों से जीवों की द्रव्यहिंसा एवं भावहिंसा का त्याग करना) । (2) सत्यमहाव्रत (उक्त नवरीति से राग-द्वेष रहित, पापरहित सत्य वचन का प्रयोग करना ) | ( 3 ) अचौर्चमहाव्रत (बिना दिया, कहीं पर रखा हुआ । अकस्मात् पतित या विस्मृत परवस्तु का कथित नवरीति से ग्रहण नहीं करना) । (4) ब्रह्मचर्य महाव्रत (नवरीति से पुरुष-स्त्री सम्बन्धी विषयभोग का त्यागकर शील के अटारह हजार भेदों का पाल करना ) | ( 5 ) परिग्रहत्याग महाव्रत ( मिथ्यात्व क्रोधादि कषाव रूप 14 प्रकार के अन्तरंग परिग्रह का तथा भूमि, मकान, सुवर्ण, चाँदी, रुपया, अनाज आदि दस प्रकार के द्रव्य-समूह का नव रीति से पूर्ण त्याग करना) । इन पंच महाव्रतों की साधना मुनिराज नवरीति (मन, वचन, काय 3 x 3 कृत कारित, अनुमति 3 *3 = 9 प्रकार ) से करते हैं।
जैन पूजा - काव्य का उद्भव और विकास : 57