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की रक्षा करना), (7) उत्तम तप (भौतिक वस्तुओं में बढ़ती हुई इच्छा को रोककर धार्मिक नियमों का पालन करना), (8) उत्तम त्याग (विविध वस्तुओं की आसक्ति या लोभ का त्याग कर यघा योग्य भोजन, ज्ञान, औषधि, सुरक्षा आदि का दान करना), (9) उत्तम आकिंचन्य (भौतिक वस्तुओं से तथा क्रोध आदि विकारों से मोह, माया का त्याग कर आत्मा में श्रद्धा रखना), (10) उत्तम ब्रह्मचर्य (आत्मा के ज्ञान, दर्शन गुणों की साधना, इन्द्रियलालसा तथा काम-विकार का त्याग करना)-ये दस आत्मा के गुण (धम) हैं। ये उत्तम कर्तव्य हैं, श्रद्धापूर्वक इनका पालन करना ही धर्म का पूजन करना है। ___ विशेष दृष्टि (व्यवहारनय) से आध्यात्मिक रत्नत्रय को भी धर्म कहा जाता है-(1) सम्यग्दर्शन (जीव (आत्मा) आदि सात तत्त्वों पर आस्था रखना, सत्यार्थ देव शास्त्र गुरु का श्रद्धान करना, आठ अंग तथा गुण चतुष्टय को धारण करना, मद का त्याग करना आदि), (2) सम्यग् ज्ञान (1. आत्मा, 2. पुद्गल (भौतिक जड़), 8, धर्म द्रव्य, 4, अधर्मद्रव्य, 5. आकाशद्रव्य, । कालद्रव्य-इन मौलिक छड़ द्रव्यों का समीचीन ज्ञान करना। 1. जीव, 2, अजीच, 3. आसव, 4. बन्ध, 5. संवर, 6. निर्जरा, 7. मोक्ष, 8. पुण्य, ५, पाप-इन नव तत्व या पदार्थो का सत्यार्थ ज्ञान प्राप्त करना, शब्दाचार आदि आठ अंगों द्वारा ज्ञान का विकास करना, संशय विपरीतत्व तथा विमोह (अज्ञान)-इन तीन दोषों का त्याग करना। (३) सम्यक चारित्र (श्रद्धान तथा यथार्थ ज्ञान के साथ राग-द्वेष-मोह आदि विकारों का त्याग कर आत्मा का चिन्तन करना, पंच अणुव्रत तथा पंचमहाव्रत रूप दो प्रकार से अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन व्रतों का यथायोग आचरण करना, पूर्वोक्त पंच समिति तथा तीन गुप्ति का आचरण करना)।
___ व्यवहारनय (श्रावक की दृष्टि) से-1. हिंसा (प्राणिवध), 2. असत्य, 3. चौर्य, 4. कुशील (दुराचार), 5. परिग्रह-इन पंच पापों का स्थूल रीति से त्याग कर अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्य अणुव्रत, ब्रह्मचर्य अणुव्रत, परिग्रह परिमाण अणुव्रत का श्रावकों (गृहस्थों) द्वारा पालन ।
आठ मूल गुण-(1) मदिरा आदि नशीली वस्तु का त्याग, 2. मांस का त्याग, १. मधु (शहद) का त्याम, 4. रात्रि भोजन का त्याग, 5. बड़फल, पीपल, पाकर, कठूमर, अंजीर-इन पंच उदुम्बर फलों का त्याग, 6. वीतरागदेव शास्त्र-गुरु अथवा अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, वीतराग, साधु-इन पंच परमेष्टी देवों का नित्य पूजन-भजन, 7. प्राणी मात्र में दयापूर्वक रक्षा का भाव रखना, 8. जल को छन्ने से छानकर उपयोग करना-इन आठ मूल गुणों का पालन करना भी धर्म है।
सप्त व्यसन (खोटी पाप वासना या आदत) का त्याग-1. झूत क्रीड़ा का त्याग, 2. मांस का त्याग, 3. पदिरा आदि का त्याग, 4. वेश्या-सेवन का त्याग,
जैन पूजा-काव्य का उद्भव और विकास ::