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गाथा ५
उत्तर-प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञानमे सख्यात अनुयोग है । प्रश्न ८०- प्राभृतप्राभृत समास किसे कहते है ?
उत्तर- प्राभृतप्राभृतसे ऊपर और प्राभृतसे नीचे एक-एक अक्षर बढकर जितने भेद होते है वे सभी प्राभृतप्राभृत समास कहलाते है ।
प्रश्न ८१- प्राभृतश्रु तज्ञान किसे कहते है ? उत्तर- उत्कृष्ट प्राभृतप्राभृतसमाससे ऊपर एक अक्षर' बढनेपर प्राभृतश्रुतज्ञान होता है। प्रश्न ८२-प्राभृतसमास श्रुतज्ञान किसे कहते है ?
उत्तर-प्राभृतश्रु तज्ञानसे ऊपर और वस्तु श्रुतज्ञानसे नीचे एक एक अक्षर बढ़कर जितने भेद होते है वे सब प्राभृतसमास श्रुतज्ञान है ।
प्रश्न ८३-वस्तुभ्र तज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर- उत्कृष्ट प्राभृतसमासके ऊपर एक अक्षर बढनेपर वस्तुश्रु तज्ञान होता है । प्रश्न ८४-वस्तुश्रु तज्ञानमे कितने प्राभूत होते है ? उत्तर-वस्तुश्रु तज्ञानमे २० प्राभूत होते है । प्रश्न ८५-वस्तुसमास श्रू तज्ञान किसे कहते है ?
उत्तर-वस्तुश्रु तज्ञानसे ऊपर और पूर्व श्रुतज्ञानसे नीचे एक एक अक्षर बढकर जितने भेद होते हैं वे सब वस्तुसमास श्रुतज्ञान है।
प्रश्न ८६-पूर्वश्रु तज्ञान किसे कहते है ? उत्तर-उत्कृष्ट वस्तुममासमे एक अक्षर बढ़नेपर पूर्वश्रु तज्ञान होता है । प्रश्न ८७-पूर्वसमास श्रुतज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर-पूर्वश्रुतज्ञानसे ऊपर जब तक लोकबिन्दुसार नामक १४वां पूर्व पूर्ण हो जाता है तब तक एक एक अक्षर बढकर जितने भेद है वे सर्व पूर्वसमास श्रुतज्ञान है।
प्रश्न ८८- उत्कृष्ट पूर्वममाससे ऊपर क्या कोई श्रुतज्ञान नही है ? उत्तर- उत्कृष्ट पूर्वसमाससे ऊपर भी श्रुतज्ञान होता है।
प्रश्न ८६ - फिर उत्कृष्ट पूर्वसमाससे ऊपर वाले श्रुतज्ञानको श्रुतज्ञानके उक्त भेदोमें क्यो नही अलग नामसे बताया ?
उत्तर-- उत्कृष्ट पूर्वसमाससे ऊपर जितना श्रुतज्ञान रह जाता है वह सब एकद्रव्य श्रुतपदके बराबर भी नहीं है, इसलिये इस प्रक्रियामे उसे अलग भेद करके बताया नही है।
प्रश्न ६०-- इस अवशिष्ट श्रुतज्ञानको किस नामसे बोलते है ?
उत्तर-प्रवशिष्ट श्रुतज्ञानका नाम अङ्गबाह्य है । इसमे सामायिकादि १४ विपयोका वर्णन है।