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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका दर्शन निरपेक्ष पूर्ण स्वाभाविक शुद्ध पर्याय है।
प्रश्न ४-- मतिज्ञानादिक ४ ज्ञान व चक्षुर्दर्शनादिक तीन दर्शन किस व्यवहारनयसे जीवके लक्षण माने गये है ?
उत्तर- मति, श्रुन, अवधि, मन पर्यय-ये चार ज्ञान और प्रादिके ३ दर्शन अशुद्ध सद्भुत व्यवहारनयमे जीवके लक्षण कहे गये है। इस नयका दूसरा नाम उपचरित सद्भूत व्यवहारनय भी है। ये ज्ञान व दर्शन, ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्मके क्षयोपशमके कारण यथार्थ कुछ प्रकट है इसलिये सद्भूत है, किन्तु कारणवश अपूर्ण हैं, अत अशुद्ध अथवा उपचरित है, पर्यायें हैं, अत: व्यवहारनयके विषय है।
प्रश्न ५.- कुमति, कुश्रुत, कुअवधिज्ञान किस व्यवहारन यसे जीवके लक्षण है ?
उत्तर-- ये कुज्ञान उपचरितासद्भूतव्यवहारसे जीवके लक्षण है । ये कुज्ञान मिथ्यात्व के उदयवश होते है, इसलिये उपचरित है, विकृत भाव है । अतः असद्भूत हैं और पर्याय है, इस कारण व्यवहारनयके विषय हैं।
प्रश्न ६- ये सामान्यसे जीवके लक्षण है, इसका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-ये बारह प्रकारके उपयोग समूह रूपमे जीवके लक्षण कहे जा रहे है । प्रत. इसे व्यवहारनयसे कहनेपर भी ससारी या मुक्त जीवके लक्षण है, ऐसी विवक्षा नहीं है।
प्रश्न ७- उपयोग बिना तो जीव रहता ही नही है, फिर ये उपयोग व्यवहारनयमे क्यो कहे?
यह कथन पर्याय की अपेश है। Joउत्तर-उपयोग अर्थग्रहणके व्यापारको कहते है।। (यह उपयोग चाहे शुद्ध भी हो तो भी एक समयमे जो जाननवृत्ति है वही दूसरे समयमे नहीं है । दूसरे समयमे दूसरी ही उस समय को जाननवृत्ति है । इसी कारण उपयोग जीवका लक्षण व्यवहारसे ही है, क्योकि उपयोग कालिक स्वभाव नहीं है।
प्रश्न ८- उपयोग कितनी प्रकृतिके होते है ? उत्तर--उपयोग ३ प्रकारके होते है- (१) शुद्ध, (२) शुभ और (३) अशुभ । चारित्रगुणका
पर्याय प्रश्न :-शुद्ध उपयोग कौन है ? उत्तर-- केवलजान और केवलदर्शन- ये दो शुद्ध उपयोग है । स्वाभानिल परिणाम प्रश्न १०-- शुभ उपयोग कोन है ? उत्तर- मतिज्ञानादिक ४ ज्ञान और चक्षुर्दर्शनादिक ३ दर्शन, ये शुभ उपयोग है।
प्रश्न ११- अशुभ उपयोग कितने और कौन-कौन है ? - उत्तर- कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और कुअवधिज्ञान-- ये तीन कुज्ञान अशुभ उपयोग है।
/प्रश्न १२- शुद्धनय किसे कहते है ? . . (स्वाकाशितो- निश्चय नय पियापम ६. आता सद्भूत पराश्रितत्वो व्यवहार नम ..स्वभाव में न हम अपेक्षा अदभूतात्यहा
विभाग
योगमानदला
उपचारित नया