________________
गाथा अशुद्ध निश्चयनयसे कर्ता है।
प्रश्न १०- रागादि भाव जब प्रात्माके स्वभाव नहीं है तब जीत्र इन्हे करता क्यो है ?
उत्तर-आत्माका स्वभाव निष्क्रिय अभेद चैतन्य है। इस निजस्वभावकी दृष्टि, उपलब्धिसे रहित होकर यह जीव रागादि भावकर्मोका कर्ता होता है।
प्रश्न ११- जिन कर्मोके उदयको निमित्त पाकर यह भावकर्म हुआ वे द्रव्यर्म कैसे
प्रश्न ११
बने ?
उत्तर-पूर्वके भावकोंको निमित्त पाकर द्रव्यकर्मकी रचना हुई ।
प्रश्न १२-इस तरह तो इतरेतराश्रय दोष या जावे , क्योकि जब द्रव्यकर्म हो तो भावकर्म बने और जब भावकर्म हो तो द्रव्यकर्म बने ?
उत्तर-- इसमे इतरेतराश्रय दोष नही आता, क्योकि पूर्वका भावकम पूर्वबद्ध द्रव्यकर्म के उदयसे होता है और वह द्रव्यकर्म भी पूर्वके भावकर्मके निमित्तसे बघता है । इस तरह भावकर्म और द्रव्यकर्ममे बीज वृक्षकी तरह या पितापरम्पराकी तरह अनादि परम्परा सम्बन्ध है।
प्रश्न १३- शुद्ध भावोका कर्ता जोव किस शुद्धनयसे है ? उत्तर-शुद्धनिश्चयनयसे जीव शुद्ध भावोका कर्ता है। प्रश्न १४-शुद्ध भावसे यहाँ क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-मलिनतासे रहित अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य प्रादि शुद्ध भाव है।
प्रश्न १५-इन शुद्ध भावोका कर्ता कौन जीव है ?
उत्तर-शुद्ध भावोका कर्ता पूर्ण शुद्धनिश्चयनयसे तो मुक्त जीव याने अरहत और, सिद्धप्रभु है । भावनारूप एकदेश शुद्धनिश्वयनयसे छद्मस्थावस्थामे अन्तरात्मा शुद्ध भावोका कर्ता है।
प्रश्न १६-शुद्ध भावोका कर्ता जीव शुद्ध निश्चयनयसे क्यो है ?
उत्तर-अनन्तज्ञानादि शुद्ध पर्यायें कर्म उपाधिके अभावमे होती हैं और स्वभावके अनुरूप है, अतः इनका कर्तृत्व शुद्ध है और जीवकी ही परिणति है, अतः निश्चयसे इनका कर्तृत्व है । इस प्रकार जीव अनन्तज्ञानादि शुद्ध भावोंका शुद्धनिश्चयनयसे कर्ता है।
प्रश्न १७-- परमशुद्धनिश्चयनयसे जीव किसका कर्ता है ?
उत्तर-परमशुद्धनिश्चयनयसे जीव अकर्ता है । इस नयके अभिप्रायमे निजमे भी कर्ताकर्म भेद नही है । समस्त भेद, विकल्प, पर्यायको दृष्टिसे रहित अखण्ड विषय परमशुद्ध निश्चयनयका है।