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गाथा ३०
११६ शील कहते होगे?
उत्तर- वस्तुतः तो निजस्त्रीसेवन भी कुशील है, किन्तु परस्त्री, वेश्या आदि अन्य सब कुशीलोके त्याग हो जानेसे स्वस्त्रीरमण होकर भी उस जीवके शील कहनेका व्यवहार है।
प्रश्न २५-परिग्रहेन्छा किसे कहते है ? उत्तर-बाह्य अर्थोकी इच्छा करनेको याने मूर्छाको परिग्रहेच्छा कहते है । प्रश्न २६-- परिग्रह कितने प्रकारके है ? उत्तर-परिग्रह दो प्रकारके है-(१) आभ्यतर और (२) बाह्य । प्रश्न २७-पाभ्यन्तरपरिग्रह किसे कहते है ?
उत्तर-जो आत्माका ही परिणमन हो, किन्नु स्वभावरूप न हो, विकृत हो उसे आभ्यतरपरिग्रह कहते है।
प्रश्न २८-प्राभ्यन्तरपरिग्रह कितने प्रकार के है ?
उत्तर-- आभ्यन्तरपरिग्रह १४ प्रकारके है- (१) मोह, (२) क्रोध, (३) मान, (४) माया, (५) लोभ, (६) हास्य, (७) रति (८) अरति, (९) शोक, (१०) भय, (११) जुगुप्सा, (१२) पुरुषवेद, (१३) स्त्रीवेद, (१४) नपु सकवेद ।
प्रिश्न २६-- बाह्मपरिग्रहकी कितनी जातियां है ?
उत्तर- बाह्यपरिग्रहकी दस जातियाँ है- (१) क्षेत्र याने खेत, (२) वास्तु याने मकान, () हिरण्य याने चांदी, (४) सुवर्ण याने सोना, (५) धन- गाय, भैस आदि पशु । (६) धान्य याने अन्न, (७) दासी याने नौकरानी, (८) दास याने नौकर, (९) कुप्य याने वस्त्रादि, (१०) भाण्ड याने बर्तन ।
प्रश्न ३०-- आभ्यन्तरपरिग्रहकी इच्छा क्या होती है ? उत्तर-- कषायमे रुचना, कषायमे बसना आदि आभ्यंतर परिग्रहेच्छा है। प्रश्न ३१-- अविरतिके १२ भेद कौनसे है ? उत्तर-- कायअविरति ६ और विषयअविरति ६, इस प्रकार अविर तके १२ भेद है। प्रश्न ३२- कायप्रविरतिके भेद कौनसे है ?
उत्तर- पृथ्वीकायअविरति. जलकायअविरति, अग्निकायअविरति, वायुकायअविरति, वनस्पतिकायअविरति और त्रसकायप्रविरति-ये ६ भेद कायअविरतिके है।
प्रश्न ३३- पृथ्वीकायप्रविरति किसे कहते है ?
उत्तर-पृथ्वीकायिक जीवोकी विराधनाका त्याग न करना और खोदना, कूटना, फोडना, दाबना आदि प्रवृत्तियोसे उनकी विराधना करनेको पृथ्वीकायविरति कहते है।
प्रश्न ३४- जलकायप्रविरति किसे कहते है ?