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हत
पाथा ५२
प्रश्न १३- प्राचार्य परमेष्ठीके क्या पाँच प्राचार ही मूल गुण है ?
उत्तर-आचार्य परमेष्ठीके ३६ मूल गुण है । जिनमे पाँच प्राचारोकी अधिक विशेषता मानी गई है। वे ३६ मूल गुण ये है-१२ तप, १० धर्म, ५ प्राचार, ६ आवश्यक
और ३ गुप्ति । अथवा प्राचार्य परमेष्ठीके ये मुख्य ८ गुण है-(१) प्राचारवत्व, (२) आधारवत्व, (३) व्यवहारवत्व, (४) प्रकारकत्व, (५): प्रायोपायविदर्शित्व, (६) प्रवपीडकत्व, (७) अपरिस्रावित्व और (6) निर्यापकत्व । ।। .
प्रश्न १४-- प्राचारवत्व गुण किसे कहते है ?
उत्तर-पाच प्रकारके प्राचारोका स्वय निर्दोष पालन करने व अन्य साधुवोको पालन करानेको आचारवत्व
प्रश्न १५-प्राधारवत्व गुण किसे कहते है ? . उत्तर- प्राचाराङ्ग प्रादि श्रुतका विशेष धारण होनेको आधारवत्व गुण कहते है । प्रश्न १६- व्यवहारवत्व गुण किसे कहते है ?
उत्तर–प्रायश्चित शास्त्रोको विधि और अपने ज्ञानबलके अनुसार प्रायश्चित आदि देनेको क्षमताको व्यवहारवत्व कहते है।
प्रश्न १७--प्रकारकत्व गुण किसे कहते है ?
उत्तर-सर्व सघके वैयावृत्य करनेकी विधिके परिज्ञान और वैयावृत्य करनेकी कलाको प्रकारकत्व कहते है । अपायोपाय शब्द है . पाय-दुरव-पाय - तरीका ढंग
भूत इस इकरने उपाय " :- प्रनि १८–प्रायोपायविदर्शित्व गुण किसे कहते है ?""२ अपायोमा उत्तर–किसी भी कार्यकी हानि और लाभको स्पष्ट और यथार्थ बतानेकी क्षमताको प्रायोपायविदर्शित्व कहते है।
प्रश्न १६'- अवपीडकत्व गुण किसे कहते है ?
उत्तर- आलोचना करने वाला साधु आचार्यके जिस प्रभावके कारण अपनी शल्य, अपने दोषको उगल देवे उस.प्रभावको अवपीडकत्व' कहते है।
प्रश्न २० --अपरिस्रावित्व गुण किसे कहते है ?
उत्तर-आलोचक शिष्य आचार्यसे जो भी आलोचनाको वह दोष व आलोचना आचार्य किसी भी दूसरेसे प्रकट न करे, ऐसी उदारताको अपरिस्रावित्व कहते है।।
प्रश्न २१-निर्यापकत्व गुण किसे कहते है ? ', .
उत्तर-शिष्यकी पालित आराधना अन्त समय तक निर्विघ्न चले और समाधिसे शिष्य समारसे पार हो, ऐसे उपाय करनेकी क्षमताको निर्यापकत्व कहते है ।
प्रश्न २२-क्या आचार्य परमेष्ठी केवल पदस्थ ध्यानमे ध्येय है ?'