Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 282
________________ २७४ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका ध्याये गये साधु परमेष्ठीका स्वरूप कहते है - दसणणारणसमग्गं मग्ग मोक्खस्स जो हु चारित्तं । साधयदि णिच्चसुद्ध साहू सो मुणो णमो तस्स ॥५४॥ • अन्वय- जो रिगच्चसुद्ध मोक्खस्स मग्ग दसणणाणसमग्ग चारित्त हु साधयदि म मुणी साहू तस्स णमो। अर्थ-- जो नित्य शुद्ध याने रागादिरहित, मोक्षके मार्गभूत, दर्शन ज्ञान करि परिपूर्ण चारित्रको निश्चयसे साधता है वह मुनि साधु परमेष्ठी है, उसको नमस्कार हो । प्रश्न १-- मोक्षमार्ग नित्य शुद्ध है, इसका तात्पर्य क्या है ? उत्तर-- मिथ्यात्व, राग, द्वेप रहित चैतन्यको अविकार परिणमन ही मोक्षमार्ग है और ऐसा ही अनन्तकाल तक मोक्षमार्गका स्वरूप रहेगा। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदिके किमीके अन्तर होनेपर मोक्षमार्गका स्वरूप नहीं बदलेगा तथा इसी प्रकार उक्त निश्चयमोक्षमार्गके कारणभूत बाह्य प्राभ्यन्तर परिग्रहमे रहितता तथा निष्परिग्रहतामें दोष न लगे, इस प्रकारकी अहोरात्रचर्या व्यवहार मोक्षमार्ग कहावेगा। इससे विपरीत अन्य कुछ मोक्षमार्ग ही नही। प्रश्न २-- सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र- ये तीनो मोक्षके मार्ग है या नहीं? उत्तर-- ये तीनो मोक्षके मार्ग तो है, परन्तु केवल कोई एक या दो, मोक्षमार्गका वह पद नही जिसके पश्चात् मोक्ष होता ही है। प्रश्न ३-- फिर कोई एक मोक्षका मार्ग कैसे हो सकता है ? उत्तर-- कोई एक या दो एक देश मोक्षका मार्ग है और तीनोकी परिपूर्णता प्रत्यन्तिक मोक्षका मार्ग है। प्रश्न ४-सम्यग्दर्शनका प्रारम्भ किस गुणस्थानसे होता है ? उत्तर-सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति चतुर्थ गुणस्थानमे हो जाती है । यदि सम्यक्त्व व देशचारित्र एक साथ प्रकट हो तो पाँचवे गुणस्थानमे सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति कहलाती है। यदि सम्यक्त्व और सकलसयम एक साथ प्रकट हो तो सप्तम,गुणस्थानमे सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति कहलाती है। प्रश्न ५- सम्यग्ज्ञानकी उत्पत्ति किस गुणस्थानमे हो जाती है ? उत्तर- सम्यग्दर्शनकी तरह सम्यग्ज्ञानकी भी चौथे, ५वे, ७वे गुणस्थानमे हो जाती है । परन्तु सम्यग्ज्ञानकी पूर्णता १३वें गुणस्थानमे हो जाती है । पूर्ण सम्यग्ज्ञानका अपर नाम केवलज्ञान है। प्रश्न ६- सम्यक्चारित्रको उत्पत्ति किस गुणस्थानमे हो जाती है ?

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