Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 284
________________ २७६ द्रव्यसंग्रह - प्रश्नोत्तरी टीका १४- नमस्कारका क्या तात्पर्य है ? Jwp उत्तर- क्रोध, ग्रहकार, मायाचार व लोभको छोडकर गुरणानुरागपूर्वक विनम्र होने को नमस्कार कहते है । प्रश्न १५ - नमस्कार कितने प्रकारका होता है ? उत्तर-- नमस्कार चार प्रकारका होता है- (१) भाव नमस्कार, (२) मानसिक नमस्कार, (३) वाचनिक नमस्कार और ( ४ ) कायिक नमस्कार । प्रश्न १६ - भाव नमस्कार किसे कहते है ? उत्तर-- सहज शुद्ध चैतन्यकी भावनासे उत्पन्न हुये सहज श्रानन्दका अनुभव होना भावनमस्कार है । प्रश्न १७ - मानसिक नमस्कार किसे कहते है ? उत्तर - परमेष्ठी के गुणोको चिन्तना, भावनासे मनका विनम्र हो जाना मानसिक नमस्कार है । प्रश्न १८ - वाचनिक नमस्कार किसे कहते है ? उत्तर—'णमो ग्ररहताण' प्रादि पदोका उच्चारण करने, परमेष्ठीका वाचक नाम लेने, नमस्कार हो, जयवन्त हो आदि मंगल वचन बोलने, गुणोकी प्रशंसा, स्तुति करनेको वाचनिक नमस्कार कहते है । प्रश्न १६ - कायिक नमस्कार किसे कहते है ? उत्तर - परमेष्ठी देवका लक्ष्य करके सिर नमाने, हाथ जोडने, अष्टाङ्ग या सप्ताङ्ग या पञ्चाङ्ग आदि नमस्कार करनेको कायिक नमस्कार कहते है । इस प्रकार पदस्थ ध्यान द्वारा ध्यानका उपदेश करके अब ध्याता, ध्यान, ध्येयका सकेत करते हुए निश्चय ध्यानका लक्षण कहते है - ज किचिवि चिततो गिरीहवित्ती हवे जदा साहू | लगाएयत्त तदाहु त तस्स रिगच्छय भाण ॥५५॥ अन्वय- जदा ज किचिवि चिततो साहू एयत्त लद्धरणय गिरीहवित्ती हवे तदा त तस्स णिच्छ भार हु | अर्थ - जिस समय जो कुछ भी विचारता हुआ साधु ध्येयमे चित्तको एकाग्रताको प्राप्त करके अथवा निजमे एकत्वको प्राप्त करके समस्त इच्छावोसे रहित परिणति वाला हो जाता है तब ऋषिजन उस ध्यानको उसका निश्चयध्यान कहते है । प्रश्न १- ध्येयका सकेत किस पदसे प्रकट होता है ? उत्तर- " ज किंचिवि चिततो" इस पदसे ध्येयका सकेत प्रकट होता है ।

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