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द्रव्यसग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- सहजसिद्ध परमात्मत्त्व और कार्यपरमात्मतत्त्व नथा कार्यपरमात्मतत्त्वकी प्राप्तिके उपायभूत द्रव्यस्वरूप, जीवादि सात तत्त्वोके ज्ञानमे, जिनके न तो सशय है, न विपर्ययता है और न अनध्यवसाय है तथा जिनके रागद्वेषादि भी अति मद है, ऐसे मुनिनाथ राग, द्वेष, सशय, विपर्यय व अनध्यवसाय-इन दोपोसे रहित कहे गये है।
प्रश्न ३८- "सुदपुण्णा" इस पदसे कैसे श्रुतमे पूर्ण मुनिनाथोको कहा गया है ?
उत्तर--- अथकर्ताके समयमे उपलब्ध परमागमके ज्ञानसे पूर्ण व उस परमागमके ज्ञानके अवलबनसे सजात निरपेक्ष निजशुद्धात्मतत्त्वके सवेदनसे युक्त मुनिनायोको “सुदपुण्णा" शब्दसे कहा गया है।
ऐसे मुनिनाथ द्रव्यसग्रहका शोधन करके, इस प्रकार भक्ति और लघुता प्रदर्शन करके अथकर्ता श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवने मोक्षमार्ग रत्नत्रयका प्रतिपादन करने वाले तीसरे अध्यायको समाप्तिके साथ द्रव्यसग्रह नामक प्रथ सम्पूर्ण किया ।
यह टीका सन् १९५७ के देहरादून वर्षायोगमे सम्पूर्ण हुई ।
॥ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका समाप्त।
भारतीय श्रृति-दर्शन केन्द्र
जयपुर