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द्रव्यसग्रह- प्रश्नोत्तरी टीका वाला होता है, अतः हे भन्यजीवो ! इस ध्यानको प्राप्तिके अर्थ सदा तप, श्रुत और व्रत-इन तीनोमे निरत होओ।
प्रश्न १- परमध्यानके वर्णनके बाद व्यवहार साधनोसे ध्यानका उपसहार क्यो किया?
उत्तर-यहाँ निश्चयतप, निश्चयश्रुत व निश्चयतका ग्रहण करना है । यह परमध्यानके अनन्य सहायक है । अत व्यवहारसाधन जैसी बात नहीं सोचना ।
प्रश्न २- निश्चयतप क्या है ?
उत्तर-शुद्ध आत्मस्वरूपमे तपना निश्चयतप है। इस निश्चयतपका प्राथमिक साधन अनशन आदि बारह प्रकारका तप है।
प्रश्न ३-निश्चयश्रुत क्या है ?
उत्तर-निविकार शुद्ध स्वसवेदनरूप परिणमन निश्चयश्रुत है । इस निश्चयश्रुतका साधन प्राचार शास्त्र आदि द्रव्यश्रुतका अध्ययन, मनन, आधार है।
प्रश्न ४-निश्चयब्रत क्या है ? उत्तर-- समस्त शुभ अशुभ मन, वचन, कायके व्यापारोसे निवृत्ति होना निश्चयव्रत
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प्रश्न ५-- निश्चयबतका साधन दया है ? उत्तर- अहिसामहाबत आदि बाह्य ब्रतोका पालन निश्चयब्रतका साधन है। प्रश्न ६-अहिसा महाब्रतादि तो पूर्ण त्यागरूप है, ये बाबत क्यो कहे जाते है ?
उत्तर-- ये पांचो महाव्रतादि तो पूर्ण निवृत्तिरूप नही हैं, अत ये बाबत कहलाते है अथवा एकदेशब्रत कहलाते है।।
प्रश्न ७-- एकदेशब्रत तो संयमासयम होता है, महाव्रत एकदेणबत कैसे हो सकता है ?
उत्तर- इन महानतोमे भी एकदेश प्रवृत्ति पाई जाती है, अत ये भी एकदेशव्रत है। सयमासयमरूप एकदेशबतमे ये महाबत विशेप ब्रत अवश्य है।
प्रश्न - महावतोमे क्या अनिवृत्ति या प्रवृत्ति पाई जाती है ?
उत्तर-- अहिंसामहानतमे जीवरक्षाकी प्रवृत्ति है, सत्यमहाव्रतमे सत्ययचनकी प्रवृत्ति है, अचोर्यमहाव्रतमे दत्तादानको प्रवृत्ति है, ब्रह्मचर्यमहाव्रतमे शीलरक्षणको प्रवृत्ति है, परिग्रहत्याग महाव्रतमे असग रहने, नग्न रहने, एकान्त सवाम करने आदिकी प्रवृत्ति है ।
प्रश्न - तब क्या निश्चयव्रतमे जीवरक्षाको प्रवृत्ति नही है ?
उत्तर- निश्चयवतमै शुभ अशुभ समस्त विकल्पोकी निवृत्ति है, पूर्ण मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्तिकी अवस्था है । वहा किसी भी प्रकारके विकल्पको अथवा व्यापारको अव