Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 280
________________ २७२ परदा। द्रव्यमग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- प्राचार्य परमेष्ठी पिण्डस्थ ध्यानमे भी ध्यान किये जाने योग्य है ? प्रश्न २३- इस पदस्थ और पिण्डस्थ ध्यानका परस्पर कोई सम्बन्ध है ? उत्तर- इन दोनो ध्यानोमे कार्यकारण सम्बन्ध है-पदस्थ ध्यान कारण है, और पिण्डस्थ ध्यान कार्य है। -प्रश्न २४-आचार्य परमेष्ठीके ध्यानसे क्या प्रेरणा मिलती है ? उत्तर--मोक्षमार्गके कारणभूत पञ्च-प्राचारोके धारण, पालन और निर्वहणकी सुगमता व शरणको प्रतीति होनेसे पुरुषार्थ करनेमे उत्साह बढता है । __इस प्रकार पदस्थ ध्यानमे ध्याये गये प्राचार्य परमेष्ठीके स्वरूपका वर्णन करके पदस्थ ध्यानमे ध्याये गये उपाध्याय परमेष्ठीके स्वरूपका वर्णन करते हैं जो रयात्तयजुत्तो रिगच्च धम्मोवएसणे हिरदो। सो उवझायो अप्पा जदिवश्वमहो रामो तस्स ।।५३||अन्वय-जो रयणत्तयजुत्तो गिच्च धम्मोवएसरणे गिरदो सो जदिवरवसहो अप्पा उवझायो, तस्स णमो। अर्थ-जो रत्नत्रयसे युक्त है, प्रतिदिन धर्मका उपदेश करनेमे निरत है, वह मुनिवरो मे प्रधान आत्मा उपाध्याय परमेष्ठी है, उसको नमस्कार होनो। प्रश्न १-- रत्नत्रय शब्दका निरुक्त्यर्थ क्या है ? . उत्तर-जो जिस जातिमे उत्कृष्ट हो वह उस जातिमे रत्न कहलाता है और तीन रत्नोके समाहारको रत्नत्रय कहते हैं । यहाँ मोक्षमार्गका प्रकरण है, सो मोक्षमार्गके रत्नत्रय ये ३ है-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र । प्रश्न २-रत्नत्रय कितने प्रकारका होता है ? उत्तर-रत्नत्रय २ प्रकारका होता है-(१) निश्चयरत्नत्रय, (२) व्यवहाररत्नत्रय । प्रश्न 3-निश्चयरत्नत्रय किसे कहते है ?, उत्तर- अविकार निज शुद्ध प्रात्मतत्त्वके श्रद्धान, ज्ञान और अनुचरणरूप परमसमाधिको निश्चयरत्नत्रय कहते है । इसके अपर नाम अभेदरत्नत्रय, आभ्यन्तररत्नत्रय आदि भी है। प्रश्न ४-व्यवहाररत्नत्रय किसे कहते है ? उत्तर- निश्चयरत्नत्रयके कारणभून सम्यग्दर्शनके ८ अङ्ग, सम्यग्ज्ञानके ८ अग और सम्यकचारित्रके १३ अङ्गोके धारण, पालन व निर्वहणको व्यवहाररत्नत्रय कहते है । इसके अपर नाम भेदरत्नत्रय, बाह्यरत्नत्रय आदि भी है। प्रश्न ५-- उपाध्याय परमेष्ठी किस धर्मका उपदेश करते है ?

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