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गाथा ३१
१२६ उत्तर-भावात्मक गुणोको अनुजावी गुण कहते है। इन गुणोके अविभागप्रतिच्छेद होते है । ये गुण कर्म या अधिक नाना प्रकारके स्थानोमे विकसित हो सकते है । जैसे, ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व, चारित्र, शक्ति । प्रश्न :--अघातियाकर्म किसे कहते है ?
अन्नादसण्गुण उत्तर-जो कर्म जीवके अनुजीवी गुणोका घात न करे और केवल प्रतिजीवी गुणोका विकास रुकनेमे निमित्त हो उन्हे अधातियाकर्म कहते है।
प्रश्न १०-प्रतिजीवी गुण किसे कहते है ?
उत्तर-अभावात्मक धर्मोको प्रतिजीवी गुण कहते है । इन गुणोके अविभागप्रतिच्छेद नही होते । जैसे अगुरुलघुत्व, सूक्ष्मत्व, अवगाहना, अव्याबाध । ये गुण सिखो से प्रकट
प्रश्न ११- घातियाकर्मके कितने भेद है ?
उत्तर-घातियाकर्मके चार भेद है-(१) ज्ञानावरणकर्म, (२) दर्शनावरणकर्म, (३) मोहनीयकर्म और अन्तरायकर्म ।।
प्रश्न १२-- ज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जो कर्म आत्माके ज्ञानगुणको प्रकट न होने दे अर्थात् ज्ञानगुणके अविकासमे जो निमित्त हो उसे ज्ञानावरणकर्म कहते है ।
प्रश्न १३-ज्ञानावरणकर्मके कितने प्रकार है ?
उत्तर- ज्ञानावरणकर्मके ५ प्रकार है-(१) मतिज्ञानावरण, (२) श्रुतज्ञानावरण, (३) अवधिज्ञानावरण, (४) मनःपर्ययज्ञानावरण और (३) केवलज्ञानावरण ।
प्रश्न १४-मतिज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ?
उत्तर--जिस कर्मके उदयको पाकर मतिज्ञान प्रकट न हो, उसे मतिज्ञानावरणकर्म कहते है।
प्रश्न १५- श्रुतज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जो श्रुतज्ञानको प्रकट न होने दे उसे श्रुतज्ञानावरणकर्म कहते है। प्रश्न १६- अवधिज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जो अवधिज्ञानका आवरण करे उस कर्मको अवधिज्ञानावरणकर्म कहते है। प्रश्न १७-मनःपर्ययज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जो कर्म मनःपर्ययज्ञानको प्रकट न होने दे, उसे मनः यज्ञानावरण कर्म कहते
प्रश्न १८-केवलज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जो कर्म केवलज्ञानको प्रकट न होने दे, उसे केवलज्ञातावरणकर्म कहते है।