Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 238
________________ TAKI २३० द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका जीवके नही होता है, क्योकि उसके यह प्रतीति है कि मैं सर्वज्ञ ज्ञानका ही वेदन करता हू, रोग आदिका नही। प्रश्न २८-आकस्मिकभय किसे कहते है ? उत्तर- संभव, असभव अनेक आकस्मिक आपत्तियोकी कल्पना करके भयभीत होनेको आकस्मिक भय कहते है । यह भय भी सम्यग्दृष्टि र जीवोके नहीं होता है, क्योकि सम्यग्दृष्टि को यह प्रतीति है कि मेरी ही पर्याय मेरेमे आ सकती है, अन्य कुछ मेरेमे आ ही नहीं सकता तथा जो कुछ होना है वह होता ही है आकस्मिक कुछ नहीं होता। प्रश्न २६- व्यवहारनि काक्षित अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-भोग वैभवकी आशा व निदानके त्याग सहित निजशुद्धिके ही अर्थ पूजादि धर्मानुष्ठान करनेको व्यवहारनि काक्षित अङ्ग कहते है । प्रश्न ३० -निश्चयनि काक्षित अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर- समस्त भोगविकल्पोका त्याग करके निज शुद्ध अन्तस्तत्त्वकी भावनासे उत्पन्न सहज आनन्दमे तृप्ति करनेको निश्चयनि काक्षित अङ्ग कहते है। प्रश्न ३१- व्यवहानिविचिकित्सित अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर- धर्मभूषित भव्य आत्मावोके मलिन व व्यथित शरीरको देखकर ग्लानि न करने और यथाशक्ति सेवाचिकित्सा करनेको व्यवहारनिविचिकित्सित अङ्ग कहते है अथवा रवयपर आई हुई क्षुधा प्रादि वेदनाप्रोमे विपाद न करनेको निर्विचिकित्सित अङ्ग कहते है । प्रश्न ३२-निश्चयनिर्विचिकित्सित अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-रागद्वेपादि विकल्पोका परित्याग कर निज समयसारके उन्मुख रहनेको निश्चयनिविचिकित्सित अङ्ग कहते है । प्रश्न ३३- व्यवहारप्रमूढदृष्टि अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर- मोक्षमार्गसे बहिर्भूत कुगरुवोके द्वारा प्रणीत क्षुद्रविद्या, व्यन्तरकृन आदि विस्मयकारक चमत्कारोको देखकर या सुनकर भी मूढभावसे या धर्मभावसे उनमे रुचि, भक्ति न करनेको व्यवहारअमूढदृष्टि अङ्ग कहते है। प्रश्न ३४- निश्चयअमूढदृष्टि अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-शरीर, कर्ममिथ्यात्व, राग, द्वेष, सकल्प, विकल्पोमे दृष्टवृद्धि, उपादेयवृद्धि, प्रहवृद्धि व ममत्वको छोडकर निज शुद्ध स्वरूपकी दृष्टि करनेको निश्चयअमूढदृष्टि अग कहते हैं प्रश्न ३५-व्यवहार उपगृहन अग किसे कहते है ? उत्तर-अज्ञ नी या असमर्थ जीवोके निमित्तसे यदि धर्मका अपवाद होता हो तो

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