Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 255
________________ गाथा ४५ २४७ उत्तर- ऐषणासमितिमे अयोग्यविधिसे चर्या करना, अयोग्य आहारपान करना आदिसे निवृत्ति और योगविधिसे चर्या, योग्य आहारपान आदिमे प्रवृत्ति होती है । प्रश्न १०-आदाननिक्षेपणसमितिमे किससे निवृत्ति और किसमे प्रवृत्ति होती है ? उत्तर- सचित्त पदार्थोके धरने उठानेसे निवृत्ति और पिच्छिकासे जीवोको सावधानी से हटाकर धरने उठानेमे प्रवृत्ति इस समितिमे होती है । प्रश्न ११-प्रतिष्ठापना समितिमे किससे निवृत्ति और किसमे प्रवृत्ति होती है ? उत्तर-प्रतिष्ठापनाममितिमे सचित्त (जीवसहित) स्थानपर मल मूत्र आदि क्षेपणसे निवृत्ति और पिच्छिकासे स्थान शोध कर मल-मूत्रादिक्षेपणमे प्रवृत्ति होती है। ' प्रश्न १२-मनोगुप्तिमे किससे निवृत्ति और सिमे प्रवृत्ति होती है ? उत्तर- विषयकषायोमे मनके लगानेसे निवृत्ति और आत्मतत्त्वके मनन, ध्यानमे मनकी प्रवृत्ति मनोगुप्तिमे होती है । प्रश्न १३- वचनगुप्तिमे किससे निवृत्ति और किसमे प्रवृत्ति होती है ? उत्तर-- कठोर, अहित वचनोके बोलनेसे निवृत्ति और मोन धारणमे प्रवृत्ति वचनगुप्तिमे होती है। प्रश्न १४ - कायगुप्तिमे किससे निवृत्ति और किसमे प्रवृत्ति होती है ? उत्तर- खोटे कार्यमे शरीरकी क्रियासे निवृत्ति और उपसर्ग आदिमे आनेपर भी शरीरको निश्चल रखनेमे प्रवृत्ति कायगुप्तिमे होती है । प्रश्न १५- उक्त १३ प्रकारके चारित्रके लक्षणोमे जो बाह्य विषयोका त्याग अथवा शुभक्रियामे अथवा अन्य शुभ साधनोमे प्रवृत्ति कही है वह प्रात्माका चारित्र कैसे हो सकता है ? उत्तर- उक्त बाह्यविषयक प्रवृत्ति व निवृत्ति उपचरित असद्भूत व्यवहारनयसे चारित्र कहा जाता है। प्रश्न १६- उक्त १३ प्रकारके चारित्रोमे जो रागद्वेपका परिहार अथवा आत्मतत्त्वके चिन्तन, अवलोकनमे उपयोग रहता है यह किस नयसे आत्माका चारित्र है ? उत्तर-- चारित्रमे जो रागादि परिहार व आत्मतत्वका मनन अवलोकन आदि यत्न है वह अनुपचरित व्यवहारनय अथवा अशुद्ध निश्चयनयमे चारित्र है । प्रश्न १७-- सयमासयमको चारित्र कहते है या नही ? उत्तर - संयमासयम एक देश व्यवहारचारित्र है । जिस सम्यग्दृष्टि मनुष्य या तिर्यञ्च के प्रसवधका तो त्याग है और वह शेष पत्र स्थावर जीवोके घातका त्याग न कर सके तो । उसके सयमासयम होता है । समस्त सयमासयम सरागचारित्रका एक देश अग है।

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