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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न ३३- आरम्भत्याग प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर-प्रारम्भ, व्यापारका त्याग कर देनेको प्रारम्भत्यागद्रव्यसग्रह प्रतिमा कहते है । प्रारम्भत्यागप्रतिमाधारी श्रावक धनका नवीन उपार्जन नही करता और बैलगाडी, तागा, घोडा, ऊँट, हाथी आदि सवारियोका भी त्याग कर देता है ।
प्रश्न ३४- परिग्रहत्याग प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर- अावश्यक वस्त्र, पात्रके अतिरिक्त सर्वपरिग्रहका त्याग कर देनेको परिग्रहत्याग प्रतिमा कहते है।
प्रश्न ३५-अनुमतित्याग प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर- गृहकार्य, प्रारम्भ, व्यापार, भोजनव्यवस्था आदिकी अनुमतिका भी त्याग कर देनेको अनुमतित्यागप्रतिमा कहते है ।
प्रश्न ३६-उद्दिष्टाहारत्याग प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर-दूसरोके उद्देश्यसे व केवल उस पात्रके उद्देश्यसे बनाये हुये आहारके त्याग कर देनेको उद्दिष्टाहारत्याग प्रतिमा कहते है । इस प्रतिमाके धारक दो प्रकारके होते है-(१) क्षुल्लक, (-) ऐलक । क्षुल्लक एक लगोट व एक चादर धारण करता है । जीवदयाके लिये पीछी या मृदुवस्त्र रखता है । कैची उस्तरेसे बाल बनवा लेता है या केशलोच करता है। ऐलक वेवल लगोट धारण करता है । जीवदयाके लिये केवल पीछी ही धारण करता है। केशलोच करता है, बाल नही बनवाता ।
प्रश्न ३७-क्या ऐलक सकलचारित्रका धारक नही कहलाता ?
उत्तर-ऐलक यद्यपि मुनित्वके अधिक समीप है तथापि खण्डवस्त्रका परिग्रह होनेसे सकलचारित्रका धारक नही कहला सकता।
प्रश्न ३८-- क्या यह सकलचारित्रका पालन ही मुमुक्षुका ध्येय है ?
उत्तर- यह सकलचारित्र सरागचारित्र व व्यवहारचारित्र है, अत. माध्य नहीं है, किन्तु साध्य निश्चयचारित्रका साधन है । अब इस व्यवहारचारित्र द्वारा साध्य जो निश्चयचारित्र है उसका वर्णन करते है
बहिरब्भतरकिरियागेहो भवकारणप्पणास? ।
गाणिस्स ज जिगुत्त त परम सम्मचारित्त ।।४६।। अन्वय-भवकारणप्पणासढ णाणिस्स बहिरव्भतरकिरियारोहो ज जिणुत्त त परम सम्मचारित्त।
अर्थ-ससारके कारणोके नाशके अर्थ ज्ञानी जीवके बाह्य तथा आभ्यतर क्रियावोका निरोध जो जिनेन्द्रदेवने कहा है वह निश्चय सम्यक्चारित्र है।