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उत्तर - सप्तमीको एक बार आहारपान करके ग्राहारपानका त्याग कर देना और फिर नवमीको एक बार ही आहारपान करना सो उत्तम प्रोषधोपवास है । इसी तरह त्रयोदशो को एक बार आहारपान करके श्राहारपानका त्याग कर देना और फिर पन्द्र के दिन एक वार ही श्राहारपान करना उत्तम प्रोषधोपवास है । सप्तमी और त्रयोदशीको धारणाका दिन कहते है और नवमी व पन्द्रसको पाररणाका दिन कहते है ।
प्रश्न २६ - प्रोपधोपवासका मध्यम रूप क्या है ?
गाथा ४५
उत्तर- धारणाके दिन एक बार हो आहारपान करना पर्वके दिन केवल जल ही लेना पश्चात् पारणा दिन एक बार ही आहार करना यह प्रोषधोपवासका मध्यम रूप है । प्रश्न २७ - प्रोषधोपवासका जघन्य रूप क्या है ?
उत्तर- धारणाके दिन एक बार ही श्राहारपान करना, पर्वके दिन नीरस या एक दो रस सहित ग्राहारपान करना, पश्चात् पारणाके दिन एक बार ही श्राहारपान करना यह प्रोषधोपवासका जघन्य रूप है ।
प्रश्न २८ - प्रोषधोपवासमें अन्य कर्तव्य क्या है ?
उत्तर- प्रोषधोपवासमे धारणाके प्राहारपान करनेके बादसे पाररणा के आहारपान करनेसे पहिले तक आरम्भ, व्यापारका त्यागकर धर्मध्यान सहित समय व्यतीत करना विशेष कर्तव्य है ।
प्रश्न २६ - सचित्तत्याग प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर - सचित्त जल एव वनस्पतिके खाने-पीनेका त्याग करना सो सचित्तत्याग प्रतिमा है । सचित्तत्याग प्रतिमाधारी बरसातमे पत्ते तथा बिना दले, बिना बटे अन्न व बीजको भी नहीं खाता है ।
प्रश्न ३०- दिवामैथुनत्याग प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर- दिनमे काम विकारके भाव व प्रयत्नोके त्याग करनेको दिवामैथुनत्याग प्रतिमा कहते है । इस छठी प्रतिमाका दूसरा नाम रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा भी है । इसका अर्थ है रात्रिको भोजन पान करने, कराने व अनुमोदना करनेका मन, वचन, कायसे त्याग होना ।
प्रश्न ३१ - स्वय रात्रिमे भोजन करनेका त्याग किस प्रतिमासे हो जाता है ?
उत्तर - रात्रिमे भोजन करनेका त्याग पहली प्रतिमासे हो जाता है, किन्तु पहली प्रतिमामे प्रात व सायकालकी आदि अन्तकी दो घडियोमे कभी कुछ प्रतिचार हो जाता था, नि व्रत प्रतिमासे रात्रिभोजनत्यागका निरतिचार होता है ।
प्रश्न ३२ – ब्रह्मचर्यं प्रतिमा किसे कहते है ?
उत्तर- मन, वचन, कायसे स्वस्त्रीविषयक भी कामभावका सर्वथा त्याग कर देना ब्रह्मचर्य प्रतिमा है ।