Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 274
________________ २६६ द्रव्यमग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न ३६- पिण्डस्थ ध्यानका क्या स्वरूप है ? उत्तर- समाधिसाधक व धारणादि पद्धतिसे किसी रूप व प्रकारमे चैतन्य पिण्डके ध्यान करनेको पिण्डस्य ध्यान कहते है। इसमे पार्थिवी, मारुती आदि धारणावोकी विधिसे वढकर अपने आपमे उच्च. साधक अरहन्त जैसे परमातमतत्त्वकी प्रतिष्ठा की जाती है । प्रश्न ३७-रूपस्थ ध्यानका क्या स्वरूप है ? उत्तर-- अरहन्त भगवानके पाभ्यन्तर बाह्य विभूति सहित स्वरूपके चिन्तवन करने को रूपस्थ ध्यान कहते है । इस ध्यानमे समवशरण विराजमान अतिशय सम्पन्न अरहत प्रभु ध्येय होते है। प्रश्न 3:--रूपस्थ ध्यानमे अरहत प्रभुका किस प्रकारसे ध्यान करना चाहिये ? उत्तर-रूपस्थ ध्यानमे साक्षात् ममवशरणमे विराजमान, बारह सभावोसे वेष्टित, केवलज्ञानके अतिशयोका साक्षात्सा करते हुए अनन्त चतुष्टयादि अन्तरङ्गविभूतिमे ध्यान ले जावें। प्रश्न ३६- अरहत प्रभुके कौनमा गुणस्थान होता है ? उत्तर- अरहत प्रभुके १३ वे याने सयोगकेवली व १४ वा याने अयोगकेवली-ये २ गुणस्थान होते है । केवलज्ञान होने पर और जब तक उनके शरीरका सयोग रहता है तब तक वे परम-आत्मा अरहत कहलाते है । ' उसमे भी जब तक योग (प्रदेशोका हलन-चलन जिससे कि विहारं दिव्यध्वनि भी हो जाती है) रहता है वे सयोगकेवली कहलाते है और जब योग नष्ट हो जाता है तब अयोगकेवली कहलाते है । प्रश्न ४०-अयोगकेवली कब तक रहते है ? - • “उत्तर-- एक अरहत प्रभु एक सेविण्डसे भी कुछ कम काल तक अयोगकेवली रहते है । इसके पश्चात् ये सिद्धपरमेष्ठी हो जाते है। ।, • - 'अब पदस्थध्यानमे आये हुये सिद्धपरमेष्ठीका स्वरूप कहते है । गट्टकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणमो दद्वा । । पुरिसायारो अप्पा सिद्धो भाएह लोयसिहरत्थो ।।५।। अन्वय- णटुकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणो दट्ठा पुरिसायारो अप्प सिद्धो, लोयसिहरत्थो भाएह । .' अर्थ-- नष्ट हो गये है अष्टकर्म और शरीर जिसका, लोक और अलोकके जानने देखने वाला, जिस पुरुष देहसे मोक्ष हुमा है उस पुरुषके आकार वाला आत्मा सिद्धपरमेष्ठी कहा लाता है, ऐसे लोकके शिखरमे स्थित सिद्धपरमेष्ठीको ध्यावो। प्रश्न १-कर्मके किस रूप परिणमन हो जानेका नाम नाश है ?

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