Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 276
________________ २६८ द्रव्यसंग्रह-श्नोत्तरी टीका उत्तर - जैसे मूसके भीतर मोम रखकर, मोमके चारो तरफ चादी रखकर गहना ढालनेके लिये मोम गलाकर फिर तैयार गहना निकाल लिया जाता है तो वहां मोमरहित मूस के बीच प्राकार पूर्व जैसा रह जाता है इसी प्रकार जिस पूर्व पुरुप शरीरमे कर्मबद्ध जीव रहता था, कर्मके गल जानेपर और आत्माके सिद्ध हो जानेपर याने शरीरसे जुदा होकर सर्वथा पूर्ण विकसित हो जानेपर आत्माके प्रदेशोका आकार वही रह जाता है, जो पूर्व शरीरमे था। - प्रश्न १०- क्या गिद्ध प्रात्माके भी प्रकार होता है ?. . . उत्तर- रूपादि गुणो पर्यायोसे रहित होनेसे, प्रात्मा निराकार है और अतीन्द्रिय अमूर्त चैतन्यरसनिर्भर होनेसे भी निराकार है, किन्तु प्रदेशोकी अपेक्षा, व्यवहारनयसे चरमशरीरके आकार न होनेसे चरमशरीरके बराबर आकार सिद्धोके रहता है । इसी तरह अन्य ससारी आत्मा भी निश्चयनयसे निराकार है तथापि व्यवहारनयसे वर्तमान देहके प्राकार है। प्रश्न ११–'सिद्ध' शब्दका क्या तात्पर्य है ? उत्तर- सिद्ध शब्दके निम्नलिखित तात्पर्य है- । पर) सित दग्ध कर्मेन्धन येन सः सिद्ध , जिसने समस्त कर्मेन्धनको जला दिया है, __ नष्ट कर दिया है उसे सिद्ध कहते है। (२) सेधति स्म (षधु गतौ) अपनुरावृत्या इति सिद्धः, जो फिर न लौटे, इस प्रकार चला गया अर्थात् निर्वाणपुरीको चला गया उसे सिद्ध कहते, है ।। . ३) सेधति (पिधु सराद्धौ) सिद्धयति स्म निष्ठिनार्थों भवति स्म इति सिद्ध , जो सर्व सिद्ध कर चुका याने कृतकृत्य हो गया, उसे सिद्ध कहते है । ४) सेधति स्म (पधुन शास्त्रे) शास्ता अभवत् इति सिद्ध, जो हितोपदेशक या धर्मानुशासक हुआ था, उसे सिद्ध कहते है। (५) सेधति स्म (षिधून माङ्गल्ये) माङ्गल्यरूपता अनुभवति स्म इति सिद्ध, जिसने माङ्गल्यत्व रूपको अनुभव किया, उसे सिद्ध कहते है । (६) सिद्ध-जो सदाके लिये सिद्ध हो चुका, अनन्तकाल तक ऐसे ही पूर्ण रहेगा उसे सिद्ध कहते है। ७) सिद्ध - प्रसिद्ध, जो भव्य जीवो द्वारा प्रसिद्ध है उसे सिद्ध कहते है, भव्य जीवो द्वारा सिद्धप्रभुके गुण उपलब्ध है, अतः यह निर्मल आत्मा सिद्ध कहलाता है । इत्यादि "सिद्ध' शब्दके अनेक अर्थ है । सब अर्थोका प्रयोजन एक यही है कि निष्कल निष्कलंक निरजन परमात्मा कारणपरमात्मतत्त्वके पूर्ण अनुरूप विकासको प्राप्त है । सिद्धप्रभु समस्त अनुजीवी व प्रतिजीवी गुणोको पूर्ण सिद्ध कर चुके हैं (ये लोकशिखर है) - -सिद्धप्रभु लोकके शिखरपर ही स्थित क्यो रहते है ? .

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