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स्विरमा २५७
गाथा ४८
उत्तर- यद्यपि यह बात ठीक है कि चित्तकी स्थिरताके समय एक विकल्प रहता है आ तथापि ऐसी चित्तकी स्थिरता होनेपर जहाँ कि एक ही ओर वृद्धि हानि आदि परिवर्तनसे रहित विकल्प हो, अन्तमे उस विकल्पका भी प्रभाव हो जाता है । रट-आनष्ट
प्रश्न ४- वृद्धि हानि रहित एक ही विकल्पके होनेपर पश्चात् विकल्पके प्रभावकी सभावना क्यों रहती है ?
उत्तर-विकल्पोकी संततिका कारण किसी भी एक विकल्पका टिकाव न होना है, अत उक्त चिनकी स्थिरतासे विकल्पोका प्रभाव हो जाता है ।
प्रश्न ५- मोह किसे कहते है ?
उत्तर- मोह मूर्छाको कहते है, जिसमे स्व और परको भिन्नताकी और स्वके स्वरूप की प्रतीति नही रहती है । मोहमे परिणत प्रात्मा इष्ट पदार्थोको तो अपनाता है और अनिष्ट पदार्थोंमे विचिकित्सा करता है। हटाने का भाव - द्वेष
प्रश्न ६- मोह होनेका कारण क्या है ?
- उत्तर-मोह उत्पन्न होनेमे दर्शनमोहनीयकर्मका उदय निमित्त कारण है और मोहरूप परिणमनेको उद्यत स्वय जीव उपादान कारण है ।
प्रश्न ७- मोह परिणाममे निर्विकल्प ध्यान क्यो नही होता?
उत्तर-मोहमे जब स्वको, स्वके सहजस्वरूपकी खबर ही नही है तब परपदार्थ सम्बन्धी उपयोगसे कोई कैसे निवृत्त हो ? मोहमे परपदार्थकी ओर ही उपयोग रहता है और परपदार्थ के उपयोगमे विकल्पोकी बहुलता ही है, अतः वहाँ निर्विकल्प ध्यान कभी सभव नही हो सकता।
प्रश्न ८-राग किसे कहते है ? उत्तर- इन्द्रिय और मनको मुहावना लगनेको राग कहते है। . प्रश्न ६-- रागमे निर्विकल्प ध्यान क्यो नही होता है ?
उत्तर- राग स्वय विकल्प है, रागमे भी परपदार्थकी ओर उपयोगे है, अतः रागमें निर्विकल्प ध्यान नहीं हो सकता।
प्रश्न १०- मोह और रागमे क्या अन्तर है ?
उत्तर- मोह तो अपने बेसुधपनको कहते है और राग इन्द्रिय व मनको सुहावना लगनेको कहते हैं । मोहके होते सन्ते राग होता ही है, किन्तु राग हो और मोह न हो, ऐसी भी स्थिति रागमे हो सकती है।
प्रश्न ११- द्वेष किसे कहते है? उत्तर-- इन्द्रिय और मनको अमुहावना लगनेको द्वेष कहते है ।