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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १२-द्वेषमे निर्विकल्प ध्यान क्यो नही होता है ?
उत्तर-द्वेषका विषय परपदार्थ ही होता है। परपदार्थमे द्वैपबुद्धि रखनेसे तो विकल्पोको ज्वालावोका ही उदय है, वहा निर्विकल्प ध्यानकी कभी भी सभावना नही है ।
प्रश्न १३- उप तो मोहसे होता है, फिर मोहसे पृथक् द्वेपको क्यो कहा? CALउत्तर- मोहके होते सन्ते तो द्वेप होता ही है, किन्तु ऐसी भी स्थिति होती है कि द्वेष तो हो और मोह न हो, मो द्वेष और मोहमे लाक्षणिक भेद है, अत. मोह और द्वेष दोनो को कहना पड़ा है।
प्रश्न १४- मोह, राग और द्वेप न होने देनेका साक्षात् उपाय क्या है ?
उत्तर-प्रात्मीय सहज आनन्दका सवेदन मोह, राग और द्वेषके न होने देनेका साक्षात् उपाय है।
प्रश्न १५-सहज प्रानन्दके सवेदनका उपाय क्या है ? कउत्तर-निरपेक्ष, अखण्ड, निर्विकल्प चैतन्यस्वरूप निज परमात्मसत्यको अभेदभावना सहज प्रानन्दके सवेदनका उपाय है।
अब निर्विकल्प ध्यानकी सिद्धिसे पहिले होने वाले उद्यमोमेसे एक उद्यमभूत पदस्थध्यानका वर्णन करते है
पणतीस सोल छप्पण चउद्गमेग च जवह झाएह ।
परमेट्ठिवाचयारण अण्ण च गुरुवएसेण ॥४६॥ अन्वय-परमेट्ठिवाचयाण पणतीस सोल छप्पण चउ दुगमेगं च जवह, झाएह, गुरुवएसेण अण्ण च जवह झाएह ।
अर्थ- परमेष्ठियोके वाचक पैतीस, सोलह, छः, पांच, चार, दो और एक अक्षरोके मन्त्रोको जपो और ध्यान करो तथा गुरुके उपदेशके अनुसार अन्य भी मन्त्रोको जपो और ध्यान करो।
प्रश्न १- परमेष्ठी किसे कहते है ?
उत्तर-परमेष्ठी द्रव्योका स्वरूप आगे गाथानोमे कहेगे, अत यहाँ उसका विस्तार न करके केवल शब्दनिष्पत्ति द्वारा ही दिखाते है- परम माने है उत्कृष्ट, जो परमपदमे स्थित हो उन्हे परमेष्ठी कहते है।
प्रश्न २- परमेष्ठी कितने होते है ?
उत्तर- जितने परमपद हैं उतने ही उनमे स्थित रहने वाले परमेष्ठी कहलाते है। ये परमपद ५ है- अरहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु । इस प्रकार परमेष्ठी भी ५ हैअरहन, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु ।