Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 263
________________ गाथा ४७ २५५ तत्त्वमे उपयुक्त हुआ उसहीमे स्वसंवेदन रूप भावतके द्वारा स्थिर होना, उसमे कुछ भी परिवर्तन नहीं होना ऐसे ध्यानको एकत्ववीतर्क अविचार शुक्लध्यान कहते है। इस शुक्लध्यानकी समाप्ति होते ही केवलज्ञानकी उत्पत्ति हो जाती है। । प्रश्न २४- सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान किसे कहते है ? उत्तर- जहाँ केवल सूक्ष्मकाययोग रहे और जिसका कभी प्रतिपात याने पतन न हो उस परिणमनको सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान कहते है। यह ध्यान १३ वे गुणस्थानके अन्तमे होता है। प्रश्न २५- व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान किसे कहते है ? उत्तर-जहाँ पर समस्त क्रिया (योग) का अभाव हो चुका हो और पुन कभी योग आ ही न सके, ऐसे परिणमनको व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान कहते है । यह ध्यान १४ वे गुणस्थानमे होता है। प्रश्न २६~-सयोगकेवली व अयोगकेवली गुणस्थानमे तो मनोबल है ही नही, फिर वहाँ ध्यान कैसे बन सकता है ? उत्तर-सयोगकेवली व अयोगकेवली गुणस्थानमे केवलज्ञान होनेसे वहाँ मनोबल नहीं है, अतः निश्चयसे तो वहाँ ध्यान' होना नही घटता तथापि ध्यानका उत्कृष्ट फल कर्मनिर्जरा है और सयोगकेवली एव अयोगकेवलीमे कर्मनिर्जरा पाई जाती है, अत उपचारसे इन दोनो गुणस्थानोमे भो ध्यान माना गया है । प्रश्न २७-ध्यान कहते किसे हैं ? Mial उत्तर-एक ओर चिन्तवनके रुक जाने याने ठहर जानेको ध्यान कहते है । यद्यपि यह ध्यान मन वाले जीवके ही होना चाहिये, किन्तु शुभध्यानका फल कर्मनिर्जरा सयोगकेवली व अयोगकेवलीके पाई जानेसे अन्तिम अन्तिम शुक्लध्यान होते है। तथा एकेन्द्रियसे असज्ञी पञ्चेन्द्रिय तक भी अशुभध्यानका फल कर्मास्रव पाया जाने से ४ आर्तध्यान व ४ रौद्रध्यान । होते है। प्रश्न २८-उक्त १६ ध्यानोमे कौनसे ध्यान ससारके कारण है और कौनसे ध्यान मोक्षके कारण है ? 60 उत्तर–चार आर्तध्यान व चार रौद्रध्यान तो ससारके कारण है और चार धर्मध्यान यद्यपि मुख्यतासे पुण्यबन्धनके कारण है तथापि परम्परया मुक्तिके कारण है। चार शुक्लध्यानमे अन्तिम तीन शुक्लध्यान तो साक्षात् मुक्तिके कारण है, और पृथक्त्ववितर्कवीचार भी साक्षात् मुक्तिका कारण है, परन्तु चारित्रमोहके उपशमक साधुवोके चारित्रमोहके उपशम के कारण इस ध्यानके उत्पन्न होनसे चारित्रमोहका. उदय अवश्यम्भावी है. और अतएव यह

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