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गाथा ४७
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उत्तर- धर्मध्यान और शुक्लध्यान- इन दोनो ध्यानके द्वारा ही मोक्षमार्गकी सिद्धि हो सकती है । इन दोनो ध्यान और इनके प्रभेदोमे उत्तरोत्तरके ध्यानसे मोक्षमार्गको सिद्धि बढती चली जाती है ।
- प्रश्न ५ – समस्त ध्यान किनने होते है ?
- उत्तर- ध्यान १६ होते है-प्रार्तध्यान ४, रौद्रध्यान ४, धर्मध्यान ४, शुक्लध्यान ४ । प्रश्न ६ - प्रार्तध्यान चार कौन-कौनसे है ?
(उत्तर- इष्टवियोगज, अनिष्टसयोगज, वेदनाप्रभव और निदान ये चार प्रार्तध्यान है । प्रश्न LI इष्ट वियोग आर्तध्यान किसे कहते है ?
'उत्तर -- इष्ट वस्तु या इष्ट बन्धु मित्रके वियोग होनेमे जो उसके सयोगके लिये चिन्तवन रहता है उसे इष्टवियोगज प्रर्तिध्यान कहते है ।
प्रश्न ८ - अनिष्टसंयोगज प्रार्तध्यान किसे कहते है ?
उत्तर - श्रनिष्ट वस्तु या अनिष्ट बन्धु श्रादिके सयोग होनेपर उसके वियोग के लिये जो चिन्तन रहता है उसे अनिष्टसयोगज प्रार्तध्यान कहते है ।
प्रश्न - वेदना प्रभव आर्तध्यान किसे कहते है ?
उत्तर- व्याधि होनेपर जो उस वेदनाविषयक चिन्तवन रहना है उसे वेदनाप्रभव ध्यान कहते है |
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- निदान आर्तध्यान किसे कहते है ?
प्रश्न १० 'उत्तर
र - इम लोकसम्बन्धी अथवा परलोक सम्बन्धी आगामी कालमे भोग आदिकी
वाञ्छा करनेको निदान प्रार्तध्यान कहते है ।
प्रश्न ११ - रौद्रध्यान चार कौन-कौनसे है ?
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कहते है |
उत्तर-हिसानन्दमृपानन्द, चीर्यानन्द, विषयसरक्षणानन्द ये चार रौद्रध्यान है । प्रश्न १२ - हिसानन्द रौद्रध्यान किसे कहते है ?
उत्तर—
- हिसाके करने कराने व अनुमोदनामे आनन्द माननेको हिसानन्द रौद्रध्यान
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प्रश्न १३ -
- मृपानन्द रौद्रध्यान किसे कहते है ?
उत्तर- झूठ बोलने, बुलवाने व ग्रनुमोदना करनेमे तथा चुगली निन्दा आदि
श्रानद माननेको मृपानन्द रौद्रध्यान कहते है ।
प्रश्न १४ - चौर्यानन्द रौद्रध्यान किसे कहते है ?
उत्तर- चोरी करने व करानेमे, चोरीको अनुमोदनामे, चोरीको उत्साह दिलानेमे, चोरीका माल रखने खरीदनेमे आनन्द माननेको नौर्यानन्द रौद्रध्यान कहते है ।