Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 259
________________ गाया ४६ २५१ प्रश्न १- ससार किसे कहते है ? उत्तर- पुराने शरीरको छोडकर नये-नये शरीरोको ग्रहण कर नाना योनि और कुलो मे भ्रमण करते हुए विकल्पोके दुःख भोगनेको ससार कहते है । प्रश्न २- ससारके कारण क्या है ? उत्तर- मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ससारके कारण है। प्रश्न ३- सम्यक्चारित्रमे ससारके कारणोके विनाशका प्रयोजन क्यो निहित है ? उत्तर- सम्यक्चारित्र शाश्वत, स्वाभाविक, सत्य प्रानन्दके विकासके लिये ही होता है, अतः ससारका विनाश होना व एतदर्थ ससारके कारणोका विनाश हो जाना इसमे आवश्यक ही है। प्रश्न ४-ससारके कारणोके विनाशका क्या उपाय है ? उत्तर- बाह्य तथा आभ्यन्तर क्रियावोका निरोध ससारके कारणोके विनाशका उपाय the प्रश्न ५-बाह्यक्रियायें किन्हे कहते है ? उत्तर- वचन और शरीरको शुभ अथवा अशुभ सभी चेष्टाओको बाह्यक्रियाये कहते to प्रश्न ६-आभ्यंतरक्रियाये किन्हे कहते है ? उत्तर-मनके सभी विकल्पोको, चाहे वे शुभ या अशुभ हो, स्थूल या सूक्ष्म हो अाभ्यन्तरक्रिया कहते है। प्रश्न ७-- बाह्य व प्राभ्यतर क्रियावोके निरोध होनेपर आत्माको क्या स्थिति होती उत्तर- मन, वचन, कायकी सर्वक्रियावोके निरोध होनेपर निर्विकार सहज चैतन्यस्वरूप स्वके सवेदन बलसे सहज प्रानदके अनुभवकी निर्विकल्प दशा आत्माके होती है । प्रश्न ८-- ऐसी निर्विकल्प दशा ज्ञानीकी कैसे होती है ? उत्तर- यह निविकल्प परमसमाधि निश्चयरत्नत्रयस्वरूप अभेद ज्ञानमे बर्त रहे अभेदज्ञानीके होती है। प्रश्न ---यह निश्चयसम्यक्चारित्र किन गुणस्थानोमे होता है ? उत्तर-निश्चयसम्यक्चारित्रका प्रारम्भ तो सम्यक्त्व होते ही हो जाता है, क्योकि सम्यक्त्वके साथ सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका प्रारम्भ हो जाता है। परन्तु जहाँ तक सरागचारित्र चलता है वहा तक व्यवहारचारित्रको मुख्यता रहती है, अतः मुख्यरूपसे निश्चय सम्यक्चारित्र ८वे गुग्णस्थ,नसे १४वे गुणस्थान तक रहता है । सज्वलन कषायका उदय मद

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