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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका होनेसे सप्तम गुणस्थानमे भी निश्चयसम्यकचारित्रको प्रधान कहा जाता है ।
प्रश्न १०-चतुर्थ आदि गुणस्थानोमे निश्चयसम्यक्चारित्र किस रूपमे रहता है ?
उत्तर- चतुर्थ श्रादि गुणस्थानोमे निश्चयमम्यक्चारित्र स्वरूपाचरण चारित्रके रूपमे रहता है।
प्रश्न ११- क्या देशचारित्र व सक्लचारित्रके समय स्वरूपाचरण चारित्र नही रहता है ?
___ उत्तर-देशचारित्र व सकलचारित्रके समय भी स्वरूपाचरण चारित्र रहता है । इसी कारण यहाँ भी निश्चयसम्यक्चारित्र है, किन्तु सरागचारित्र रूप व्यवहारचारित्रके कारण वह गौण रूपसे है।
इस प्रकार सम्यग्ज्ञान व सम्यकुचारित्रका सक्षेपमे वर्णन करके अब उक्त मार्गके उपायभूत ध्यानके अभ्यासका उपदेश श्रीमत्मिद्धान्तचक्रवर्ती जी करते है -
दुविहपि मोक्खहेऊ भाणे पाउणदि ज मुणी णियमा ।
तम्हा पयत्तचित्ता जूय झारण समन्भसह ॥४७॥ अन्वय-जं मुणी दुविहपि मोक्खहेऊ झाणे णियमा पाउणदि, तम्हा. पयत्तचित्ता जूय झारण समन्भसह ।
अर्थ-जिस कारणमे कि मुनि दोनो प्रकारके मोक्षके कारणोको ध्यानके द्वारा नियम प्राप्त कर लेता है, उस कारणसे प्रयत्नचित्त होकर तुम सब ध्यानका अभ्यास करो।
प्रश्न १-रत्नत्रयकी प्राप्तिका उपाय ध्यान ही क्यो है ?
उत्तर-रत्नत्रय ज्ञानके दृढ़ एव स्थिर विकासको कहते है । ज्ञानका विकास ध्यानसे हो होता है । अत रत्नत्रयकी प्राप्तिका उपाय ध्यान ही है। कैलाश
प्रश्न २-सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र-ये तीनो ज्ञानस्वरूप क्यो है ?
उत्तर-भेददृष्टिसे तो ये तीन पृथक् पृथक् स्वरूप वाले है, किन्तु अभेददृष्टि से श्रद्धान स्वभावसे ज्ञानके होनेको सम्यग्दर्शन कहते है। ज्ञान स्वभावसे ज्ञानके होनेको सम्यग्ज्ञान कहते है और रागादि परिहरणस्वभावसे ज्ञानके होनेको सम्यक्चारित्र कहते है।
प्रश्न ३-जान गुण तो चेतन है, क्या श्रद्धान व चारित्र गुण, भी चेतन है ? ।। उत्तर—यद्याप चेतन तो ज्ञान गुण है और चेतनेका कार्य न करनेसे श्रद्धान व चारित्र गुण अचेतन है तथापि ये दोनो ज्ञानकी ही पद्धतियाँ होनेसे अभेददृष्टिसे चेतन ही है । एक श्रद्धान और चारित्र ही क्या, नात्माके सभी गुण अभेददृष्टिसे चेतन है।
प्रश्न ४-किस ध्यानके प्रतापसे ,मोक्षहेतुकी सिद्धि होती है ?