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गाथा ४१
२३५ प्रश्न ७५.- सम्यग्दर्शनसे क्या लाभ होते है ?
उत्तर- सम्यग्दर्शनका साक्षात् लाभ अविकार निजचैतन्यस्वरूपके सवेदनसे उत्पन्न सहज आनन्दके अनुभवका अनुपम लाभ है और नैमित्तिक लाभ कर्मोके भारका हट जाना है तथा प्रौपचारिक लाभ देवेन्द्र, चक्रवर्ती, तीर्थकर आदि पदो और वैभवोको प्राप्ति है।
प्रश्न ७६--उत्तम पदो और वैभवोका कारण सम्यग्दर्शन कैसे हो सकता है ?
उत्तर-यद्यपि तीर्थङ्करादि उत्तम पदो और वैभवोका कारण पुण्यकर्मका उदय है 'तथापि ऐसे विशिष्ट पुण्यकर्मोका बन्ध ऐसे निर्मल आत्मावोके ही होता है जो सम्यग्दृष्टि है
और जिनके विशिष्टशुभोपयोग होता है । सम्यक्त्वके होनेपर ही शुभ रागके ऐसे वैभवरूप फलनेसे सम्यक्त्वकी महिमा प्रकट हुई। अत. सम्यग्दर्शनका औपचारिक लाभ उत्तम पद और वैभव बताते है ।
प्रश्न ७७- सम्यग्दृष्टि जीव मरकर किन किन गतियोमे जाता है ?
उत्तर-- सम्यक्त्वके होनेपर यदि आयुर्बन्ध हो तो सम्यग्दृष्टि नारकी मनुष्यगतिमे जन्म लेता है, सम्यग्दृष्टि देव मनुष्यगतिमे जन्म लेता है, तिर्यञ्च सम्यग्दृष्टि देवगतिमे जन्म लेता है, सम्यग्दृष्टि मनुष्य देवेगतिमे जन्म लेता है । केवल इस अवस्थामे कि मनुष्यने पहिले नरकायुका बन्ध कर लिया हो, पश्चात् औपशमिक सम्यक्त्व व पुनः क्षायोपशमिक सम्यक्त्व उत्पन्न करके अथवा केवल क्षायोपशमिक सम्यक्त्व उत्पन्न करके क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न करले तो वह मनुष्य सम्यग्दृष्टि मर कर पहिले नरकमे उत्पन्न होगा, नीचेके नरकोमे नही।
प्रश्न ७८.. सम्यग्दर्शन की प्राप्तिका साक्षात् उपाय क्या है ? उत्तर-भूतार्थनयसे तत्त्वोका जानना सम्यग्दर्शनका साक्षात् उपाय है । प्रश्न ७६-भूतार्थनय क्या है ?
उत्तर-किसी एक द्रव्यको अभिन्नपट्कारकपद्धतिसे जानकर अभेदद्रव्यकी ओर ले जाने वाले अभिप्रायको भूतार्थनय कहते है ।
प्रश्न ८०-सम्यग्दर्शन किसके निकट होता है ?
उत्तर- प्रोपणमिक सम्यग्दर्शन व क्षायोपशमिक (वेदक) सम्यग्दर्शन कही भी हो जावे, इसका कोई नियम नही, किन्तु क्षायिक सम्यग्दर्शन केवलो या श्रुतकेवलोके निकटमे (पादमूलमे) होता है।
प्रश्न ८१----क्या क्षायिक सम्यग्दर्शन केवलिद्विकके पादमूल विना नही हो सकता?
उत्तर- निम्नलिखित स्थितियोंमे केवलिद्विकके पादमूल बिना भी क्षायिक सम्यग्दर्शन हो सकता है