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द्रवारातरी टीका प्रश्न ४-- विन-विन दर्शनोपूर्वक कौन-सोनगे ज्ञानोपयोग होने है।
उतर-मतिज्ञानसे पहिले चदर्शन व अचक्षुदंर्णन होते है और प्रविज्ञानमे पहिले प्रवविदर्शन होता है।
प्रश्न ५- श्रुतज्ञानमे पहिले कौनमा दर्शन होना है ?
उत्तर- ध्रुननान मतिमानपूर्वन होता है, उस मनिज्ञानने पहिले जो दर्णन हुना या वही दर्शन श्रुतज्ञान का पूर्वभावी कहना नाहिये, अशवा श्रुतमानसे पहिन्न होने वाला मतिज्ञान उपचारसे दर्णन कहा जाता है।
प्रश्न :- शनशानमे साक्षात् पहिने दर्शन न होकर गतिमान ही दयो होता है ?
उत्तर-श्रुतज्ञान विशेषतया सविकल्प है, उस कारगा तज्ञानसे साक्षान पहिले दर्शन नहीं होता है । थ तज्ञान मनिजानमे कुछ जाननेपर ही ही गाता है।
प्रश्न ७--शन, गति और धनी म पूर्वोत्तरभाविताका उदाहरण क्या है ?
उत्तर-जैसे किसी पुरुषको घटनान होना है उसमे पहिले वह कट (चटाई) का ज्ञान कर रहा था । तो वह पुरुप कटजानको छोड़ देता है और घटज्ञानके लिये उद्योग करता हे इस स्थितिमे घटका और चक्षुरिन्द्रियका नन्निपात होता है अर्थात् जमे वह घटको जानेगा उस रूप इन्द्रियकी प्रवृत्तिका उद्योग होता है यह तो दर्शन हुआ। यहां अभी वाहपदार्थका ग्रहण नही है। उसके अनन्तर यह पीत कृष्ण प्रादिरूप है इत्यादि स्पसे अवान्ग्रहादिज्ञान होते है पश्चात् यह घटा विमने बनाया, कैसे बनाया, कहा बना, कितनी इसकी स्थिति है आदि ज्ञान हो वे नव थ तज्ञान है।
प्रश्न ८-मन पर्ययज्ञानमे साक्षात् पहिले दर्शन क्यो नहीं होता ?
उत्तर- मन पर्यज्ञान दूसरेके मनमे होने वाले परिणमनको याने विचार, विकल्पो को जानता है, अत. यह ज्ञान पर्यायज्ञाता है । पर्यायज्ञाता ज्ञानसे पहिले ईहादिरूप मतिज्ञान ही होता है।
प्रश्न 8-- कुज्ञानोसे पहिते कौन-कौनसे दर्शन होते है ?
उत्तर-- कुमतिज्ञानमे पहिले चक्षुर्दर्शन या अचक्षुर्दर्शन होता है । कुश्रु तज्ञानसे साक्षात् पहिले कुमतिज्ञान होता है और परम्परया पहिले चक्षुर्दर्शन या अचक्षुदर्शन होता है । कुअवधिज्ञानसे पहिले कुमतिज्ञान होता है ।
प्रश्न १० - कुप्रवधिज्ञानमे पहिले दर्शन क्यो नही होता है ?
उत्तर- कुअवधिज्ञान सम्यग्दृष्टि जीवके नही होता है, अतः उससे पहिले अवधिदर्शन नही होता । सम्यग्दृष्टि अवधिज्ञानी जीवके ही अवविज्ञानसे पहिले अवधिदर्शन होता है । अथवा किन्ही प्राचार्योके मतमे कुअवधिमे पहिले भी अवधिदर्शन हो जाता है ।