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क्या सम्यग्ज्ञान नही है ?
उत्तर-- जिनमे एकता जोडने वाले ज्ञानके होनेपर अन्य पदार्थों व भावोका भी ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न ११ – ग्रात्मस्वरूपको जाने या न जाने, केवल बाह्य पदार्थोंको यथार्थ जानना सम्यग्ज्ञान क्यो नही कहलाता
?
उत्तर -- श्रात्मस्वरूप मे एकता जोड़े बिना जो भी बाह्यपदार्थ ज्ञानमें श्रावेग उन्हे जानेगा तो किन्तु उनमे एकता जोडकर जानेगा । परमे अपना कुछ भी है, ऐसा वस्तुका स्वरूप ही नही है । त वह सम्यग्ज्ञान नही कहलाता । लोकमे लौकिक दृष्टिसे बाह्य पदार्थोका ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न १२ -- ज्ञानका फल क्या है ?
द्रव्यसग्रह - प्रश्नोत्तरी टीका
उत्तर -- ज्ञानका फल निश्चयनयमे तो ग्रज्ञाननिवृत्ति है और व्यवहारनयसे उपेक्षा होना, उपादेय एव हे की बुद्धि होना फल है ।
उदासाना
प्रश्न १३ - सम्यग्ज्ञान होनेपर किससे उपेक्षा हो जाती है ?
उत्तर - सम्यग्ज्ञान होनेपर समस्त प्रध्रुव भावोसे उपेक्षा हो जाती है ।
बुद्धि हो जाती है ?
प्रश्न १४ - सम्यग्ज्ञानीके किसमे उपादेय एव हैय उत्तर - सम्यग्ज्ञान जीवके निज शुद्ध प्रात्मतत्त्वमे उपादेय बुद्धि होती है और इस ध्रुव निज चैतन्यतत्वके अतिरिक्त जितने भी भेद दर्शक, विकल्प, श्रीपाधिक भाव व अन्य सभी पर्याय व परद्रव्य - इन सबमे हेयबुद्धि रहती है ।
प्रश्न १५ – निश्चय, व्यवहाररूप उक्त फलोकी तरह क्या ज्ञान भी दो प्रकारका
होता है ?
उत्तर - ज्ञानके भी दो भेद है - (१) निश्चयज्ञान और ( २ ) व्यवहारज्ञान | प्रश्न १६ -- निश्चयज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर- जो ज्ञान ज्ञानमय आत्माके साथ एकत्व जोड रहा हो अथवा जो ज्ञान निर्वि कल्परूप से अपना अनुभव न कर रहा हो उसे निश्चयज्ञान कहते है |
प्रश्न १७ - व्यवहारज्ञान किसे कहते है ?
उत्तर- जिस ज्ञानके परपदार्थोकी श्रोर वासना, विचार एव विकल्प है उस ज्ञानको व्यवहारज्ञान कहते है ।
प्रश्न १८ - उक्त दोनो प्रकारके ज्ञानोमे कौन सम्यग्ज्ञान है और कौन मिथ्याज्ञान है ? उत्तर-- निश्चय ज्ञान तो सम्यग्ज्ञान ही है, किन्तु व्यवहारज्ञान सम्यग्ज्ञान व मिथ्याज्ञान दोनो प्रकारके हो सकते है ।