Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 239
________________ गामा ४१ धर्मोपदेशसे, दोषके आच्छादनसे, दण्ड आदि यथोचित उपायसे अपवाद दूर करनेको व्यवहारउपगृहन अग कहते है। प्रश्न ३६- निश्चयउपगृहन अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर- अविकार चैतन्यस्वभावमय निजधर्मके आच्छादन करने वाले, विकारक मिथ्यात्व, रागादि दोपोको निज शुद्ध अन्तस्तत्त्वके ध्यान द्वारा दूर करनेको निश्चयउपगृहन अङ्ग कहते है। प्रश्न ३७-व्यवहारस्थितिकरण अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-कर्मोदयवश किसी धर्मात्मा जनका धर्मसे चलित हो रहा देखकर उसे धर्मोपदेशसे, आर्थिक सहयोगसे, अन्य सामर्थ्य आदि उपायसे धर्ममे स्थिर कर देनेको व्यवहारस्थितिकरण अङ्ग कहते है। प्रश्न ३८- निश्चयस्थितिकरण अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर- मोह, राग, द्वेष आदि अधर्मोको त्यागकर परमसमताके सवेदन द्वारा शुद्धोपयोगरूप धर्ममे स्वके स्थिर करनेको निश्चयस्थितिकरण अङ्ग कहते है । प्रश्न ३६-व्यवहारवात्सल्य अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-धर्मात्मा जनोमे निश्छल स्नेह करनेको व्यवहारवात्सल्य अङ्ग कहते है । "प्रश्न ४०-निश्चयवात्सल्य अङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-विषय कषायोसे सर्वथा प्रीति छोडकर ध्र व चैतन्यस्वभावमय निजपरमात्मतत्त्वके सवेदनसे उत्पन्न हुए सहज आनन्दमे रुचि करनेको निश्चयवात्सल्य अङ्ग कहते है । प्रश्न ४१ - व्यवहारप्रभावनाङ्ग किसे कहते है ? उत्तर-दान, पूजा, धर्मोपदेश, तपस्या श्रादिसे धर्ममार्गको प्रभावना करनेको व्यवहारप्रभावनाग कहते है। प्रश्न ४२- निश्चयप्रभावनाङ्ग किसे कहते है ? उत्तर- निजशुद्धस्वरूपके सवेदनके बलसे रागादि परभावोका प्रभाव नष्ट करके निज चैतन्य तत्त्वका शुद्ध विकास करनेको निश्चयप्रभावनाङ्ग कहते है। प्रश्न ४३- सम्यक्त्वके दोष कितने है ? निता उत्तर- सम्यवत्वके दोष नही होता, किन्तु निन भावोके होनेपर सम्यक्त्वमे बाधा आती है, वे सम्यक्त्वरे दोप कहे जाते है। ये दोष २५ है- मल (अङ्गविरोधी) ८, मद ८, अनायतन ६ प्रौर मूहना ३ । प्रश्न ४४.- अडविरोधी ८ मल-दोष कौन-कोन है ?

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