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गाथा ३५
१६१ __उत्तर- ज्ञानादि दान करने व प्राभ्यन्तर एव बाह्य परिग्रहका त्याग करनेको तथा परनिरपेक्ष निज चैतन्यस्वभावके उपयोगके बलसे समस्त विकल्पोका त्याग करके सहजज्ञान और आनन्दके अनुभवन करने को त्यागधर्म कहते है।
प्रश्न १७१ - पाकिञ्चन्यधर्म किसे कहते है ?
उत्तर- रागादिभाव, शरीर, कर्म, सपत्ति आदि समस्त परभावोके प्रति ये समस्त मेरे कुछ नही है, ऐसा अनुभव करने तथा केवल चिन्मात्र निजस्वभावके उपयोगके वलसे निर्विकल्प अनुभवन करनेको आकिञ्चन्यधर्म कहते है ।
प्रश्न १७६-- ब्रह्मचर्य नामक धर्माङ्ग किसे कहते है ? ___उत्तर-मैथुनसम्वन्धी सूक्ष्म विकल्पसे भी निवृत्ति होकर गुरुके आदेशानुसार चर्या करने व आत्मस्वरूपमे प्रवृत्ति करनेको तथा परमब्रह्मरूप निज चैतन्यस्वभावके उपयोगसे सर्व परभावोसे निवृत्त होकर निजब्रह्ममे स्थित होनेको ब्रह्मचर्यधर्म कहते है ।
प्रश्न १७७- अनुप्रेक्षा नामक भावसवरविशेप किसे कहते है ?
उत्तर-जिस प्रकार यह आत्मा अपने स्वरूपकी उपलब्धि करे उसके अनुसार प्रेक्षण अर्थात वार-बार विचार एव अनुभव करनेको अनुप्रेक्षा कहते है ।
प्रश्न १७८-अनुपेक्षा कितने प्रकारकी हे ? ___ उत्तर-- अनुप्रेक्षा १२ प्रकारकी है- (१) अनित्यानुप्रेक्षा, (.) अशरणानुप्रेक्षा, (३) ससारानुप्रेक्षा, (४) एकत्वानुप्रेक्षा, (५) अन्यत्वानुप्रेक्षा, (६) अशुचित्वाच्यनुप्रेक्षा, (७) आत्रवानुप्रेक्षा, (८) सवरानुप्रेक्षा, (६) निर्जरानुप्रेक्षा, (१०) लोकानुप्रेक्षा, (११) बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा और (१२) धर्मानुप्रेक्षा।
प्रश्न १७६- अनित्यानुप्रेक्षा किसे कहते है ? ___ उत्तर-धन, परिवार, शरीर, कर्म और रागद्वेपादिक भोव-ये सब अनित्य है, ऐसी भावना करनेको प्रनित्यानुप्रेक्षा कहते है।
प्रश्न १८०-- इस अनित्यभावनासे क्या लाभ होता है ?
उत्तर- उक्त अनित्यभावना भाने वाले पुरुपको इन पदार्थोंका सयोग व वियोग होने पर भी ममत्व नहीं होता हे चौर ममत्व न होने कालिक नित्य ज्ञायकस्वरूप निजपरमात्माकी भावना होती है, जिनसे यह अन्तरात्मा परमानन्दमय अवग्थाको प्राप्त होता है ।
प्रश्न १८१- धन, परिवार आदिके साथ प्रात्माका क्या कुछ भी सम्बन्ध नहीं है ?
उत्तर- परमार्थसे धन, परिवार, शरीर, कर्म और रागादिविभावके साथ प्रात्माका मुछ सम्बन्ध नहीं है।
प्रश्न १८२- फिर इनमे सम्बन्धको वल्पना किम अभिप्रायमे हुई?