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गाथा ३५
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उत्तर -- लवणसमुद्रसे श्रागे चारो ओर घातकी खण्ड नामका द्वीप है । इसमें दक्षिण और उत्तरमे वेदिकासे वेदिका तक एक-एक इष्वाकार पर्वत है, जिससे दो भाग इस द्वीप के हो जाते है । प्रत्येक भाग ७ क्षेत्र, ६ कुलाचल, १ मेरुपर्वत है । इस तरह धातकी खण्डमें १४ क्षेत्र, १२ कुलाचल, २ मेरु है । इनमे व्यवहारका वर्णन भरत के क्षेत्रोंकी तरह जानना । इस द्वीपका विस्तार एक ओर ४ लाख योजन है । यह भी चूडीके आकारका वृत्त है व श्रागे सभी द्वीप समुद्र इसी प्रकार गोल एक दूसरेको घेरे हुये है ।
प्रश्न २३८- धातकी खण्ड द्वीपसे आगे क्या है ?
उत्तर- धातकी खण्ड द्वीपसे आगे चारो ओर कालोद समुद्र है । इसके दोनों प्रोर दो वेदिकायें है । इसका विस्तार एक ओर ८ लाख योजन है ।
प्रश्न २३ – कालोद समुद्रमे आगे क्या है ?
उत्तर - कालोद समुद्रसे आगे पुष्करवर द्वीप है । इसका एक और विस्तार १६ लाख योजन है । इसके बीच चारो ओर गोल मानुषोत्तनामा पर्वत है । इस पूर्वार्द्धमे धातकी खण्ड द्वीप जैसी रचना है | यहाँ तक ही मनुष्यलोक है । इससे परे उत्तरार्द्धमे तथा आगे आगे द्वीप और समुद्र असंख्यात है । उनमेसे अन्तिम द्वीप व समुद्रको छोड़कर सबमे कुभोगभूमि जैसा व्यवहार है ।
प्रश्न २४० – अन्तिम द्वीपमे व सागरमे क्या रचना है ?
उत्तर—स्वयभूरमण नामक अन्तिम द्वीप और स्वयंभूरमण नामक अन्तिम समुद्रमे कर्मभूमि जैसी रचना है, किन्तु उसमे है तिर्यञ्च ही। इसी द्वीप व समुद्रमे बहुत बडी श्रवगा - हना वाले भ्रमर, बिच्छू, मत्स्य आदि पाये जाते है ।
मध्यलोकका वर्णन भी बहुत बडा है, इसे धर्मग्रन्थोसे देख लेना चाहिये । विस्तारभय से यहा नही लिखा है ।
प्रश्न २४१ - मध्यलोकके वर्णनसे हमे क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर - विदेहकी रचनासे यह बोध हुआ कि साक्षात् मोक्षमार्ग सदा खुला हुआ है । मध्यलोकमे ढाई द्वीपमे, नन्दीश्वरद्वीपमे व तेरहवें द्वीपमे व अन्यत्र अकृत्रिम चैत्यभवन है । x उनके बोधसे भक्ति उमडती है । तथा सर्वसारकी बात यह है कि यदि निज शुद्ध आत्मतत्त्व का श्रद्धान ज्ञान श्राचरणरूप समाधिभाव हो गया तो ससारके दुःखोसे मुक्त हुना जा सकता है अन्यथा मध्यलोकमे भी अनेक प्रकारके कुमानुप व तिर्यञ्च भव धारण करके भी ससार ही बढेगा | यह मनुष्यजन्म अनुपम जन्म है, इसे पाकर भेदरात्र व यथायोग्य अभेदरत्नत्रय की भावना श्राना निज निश्चयलोक सफल करो ।
प्रश्न २४२-• ऊर्ध्वलोककी क्या वय। रचनायें है ?