Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 219
________________ गाण ३५ आदिकी याचना व इशारा आदि न करने और अपने चैतन्यस्वभाव वैभवकी दृष्टिसे संतुष्ट रहनेको याचनापरीषहजय कहते है। प्रश्न २८१- अलाभपरीषहजय किसे कहते है ? ___उत्तर-कितनी ही वेदनाका प्रसङ्ग होनेपर भी आहार, औषधि आदिका अलाभ होने पर, लाभसे अलाभको श्रेयस्कर समझकर धैर्यसे विचलित न होने और प्रात्मलाभसे तृप्त रहने को अलाभपरीपहजय कहते है। प्रश्न २८२- रोगपरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर-कष्ट आदि अनेक दुःख रोगोके होनेपर उनके निवारण करनेका ऋद्धि बलसे सामर्थ्य होनेपर भी निर्विकल्पसमाधिकी रुचिके कारण प्रतीकार न करने, समतासे उसे सहने और निरामय आत्मस्वरूपके लक्ष्यसे चलित न होनेको रोगपरीषहजय कहते है। प्रश्न २८३- तृणस्पर्शपरीषहजय किसे कहते है ? उत्तर- नुकीला तृण, ककरीली भूमि, पत्थरकी शिला आदिपर विहार व्याधि आदि के कारण हुए देहजश्रमके निवारणार्थ शयन आसन करते हुये खेद न मानने और स्वरूपस्पर्श की ओर ध्यान बनाये रहनेको तृणस्पर्शपरीषहजय कहते है । प्रश्न २८४- मलपरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर- पसीनेके मलसे दाद, खाज, छाजन आदि तककी वेदनायें हो जानेपर भी पीडा को ओर लक्ष्य न देने, जीवदयाके भावसे रगडना, उबटन आदि न करने और कर्ममल दूर करने वाले स्वानुभवके तपमे लीन रहनेको मलपरीषहजय कहते है। प्रश्न २८५- सत्कारपुरस्कारपरीषहजय किसे कहते है ? । उत्तर- दूसरोके द्वारा प्रशसा, सम्मान किये जानेपर प्रसन्न न होने व निन्दा अपमान किये जानेपर रुष्ट न होने तथा अनेक चातुर्य तप होनेपर भी कोई मेरी मान्यता नही करता, ऐसा भाव न लाने और निज चैतन्यस्वभावकी महिमामे लगे रहनेको सत्कारपुरस्कारपरीषहजय कहते है। प्रश्न २८६- प्रज्ञापरीषहजय किसे कहते है ? उत्तर-मिथ्याप्रवादियोपर विजय प्राप्त करनेपर भी, अनेक विद्यावोके पारगामी होने पर भी गर्व न करने और निज विज्ञानघनस्वभावमे उपयुक्त रहनेको प्रज्ञापरीपहजय कहते है। प्रश्न २८७-अज्ञानपरीषहजय किसे कहते है ? उत्तर- अनेक तपोको चिरकालसे करते रहनेपर गो मुझे अवधिज्ञान प्रादि कोई प्रकृष्ट ज्ञान नही हुआ, बल्कि मुझे लोग मदबुद्धि, मूर्ख आदि कहते है, इस प्रकारके अज्ञानजनित खेद न करने और ज्ञानसामान्य स्वभावकी दृष्टि द्वारा प्रसन्न रहनेको अज्ञानपरोषहजय

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