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प्रकृति है ।
द्रव्यसंग्रह - प्रश्नोत्तरी टीका
प्रश्न १५- - तीर्थङ्करप्रकृतिका लाभ कैसे होता है ?
उत्तर - दर्शन विशुद्धि आदि १६ भावनाप्रोके निमित्तसे तीर्थङ्करप्रकृतिका लाभ होता माननेके कारण इसका लक्ष्य
है, किन्तु सम्यग्दृष्टि समस्त प्रकृतियोको हेय अथवा अनुपादेय नही करता है अर्थात् इसे भी उपादेय नही समझता है ।
प्रश्न १६ - पापप्रकृतियोमे सबसे अधिक निकृष्ट पापप्रकृति कौन है ? उत्तर - मिथ्यात्वप्रकृति समस्त पापप्रकृतियोमे निकृष्ट पापप्रकृति है । मिथ्यात्वप्रकृति के उदयसे होने वाले मिथ्यात्व परिणामसे ही ससार व ससार दुखोकी वृद्धि है ।
प्रश्न १७ - मिथ्यात्व प्रकृतिका लाभ कैसे होता है ?
उत्तर - मोह, विपयासक्ति, देव शास्त्र गुरुकी निन्दा, कुगुरु कुदेव कुशास्त्रकी प्रीति आदि खोटे परिणामोसे मिथ्यात्वप्रकृतिका लाभ होता है ।
प्रश्न १८ - मिथ्यात्वका प्रभाव कैसे होता है ?
उत्तर - मिथ्यात्वका प्रभावका मूल उपाय भेदविज्ञान है, क्योकि भेदविज्ञान के न होने से ही मिथ्यात्व हुआ करता है ।
प्रश्न १६ - भेदविज्ञानका सक्षिप्त आशय क्या है ?
उत्तर- धन, वैभव, परिवार, शरीर, कर्म, रागादि भाव, ज्ञानादिका अपूर्णं विकास, ज्ञानादिका पूर्ण परिणमन - इन सबसे भिन्न स्वरूप वाले चैतन्यमात्र निजशुद्धात्मतत्त्वको पहिचान लेना भेदविज्ञान है ।
--- प्रश्न २० - सम्यग्दृष्टिको तो पुण्यभाव और पापभाव दोनो हेय हैं, फिर पुण्यभाव क्यो करता है ?
उत्तर - जैसे किसीको अपनी स्त्रीसे विशेष राग है । वह स्त्री पितृगृहपर है और उस गाँवसे कोई पुरुष आये हो, तो स्त्रीकी ही वार्तादि जाननेके अर्थ उन पुरुषोको दान सन्मान आदि करता है, किन्तु उसका लक्ष्य तो निज भामिनीकी ओर ही है । इसी तरह सम्यग्दृष्टि उपादेयरूपसे तो निज शुद्धात्मतत्त्वको भावना करता है। जब वह चारित्रमोहके विशिष्ट उदयवश शुद्धात्मतत्त्वके उपयोग करनेमे असमर्थ होता है तो "हम शुद्धात्मभावनाके विरोधक विषय कषायमे न चले जायें व शीघ्र शुद्धात्मभावना करनेके उन्मुख हो जायें" एदर्थ जिनके शुद्ध स्वभावका विकास हो गया है, जो विकास कर रहे हैं ऐसे परमात्मा गुरुओ की पूजा, गुणस्तुति, दान आदि से भक्ति करता है, किन्तु लक्ष्य शुद्धात्मतत्त्वका ही रहता है । इस प्रकार सम्यग्दृष्टि पुण्यभाव हो जाता है ।
प्रश्न २१ - क्या इस पुण्यके फलमे सम्यग्दृष्टियोका ससार नही बढता है ?