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___ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका । मोक्षमार्गफल है, अतः उससे पहिलेका एक देश क्षायिक भाव है।
प्रश्न १५-- तब तो औपशमिक, क्षायोपशमिक व क्षायिकभाव ध्येय मानना चाहिये ?
उत्तर- ध्येय तो परमपारिणामिक भाव शुद्ध चैतन्यस्वरूप निजकारणपरमात्मत्व है । इस ही के दर्शन, प्राश्रय, उपयोग द्वारा निर्मल पर्यायका विकास होता है।
___ इस प्रकार निश्चयमोक्षमार्गका वर्णन करके अब सम्यग्दर्शन विशेषका वर्णन करते
जीवादोसद्दहण सम्मत्त रूवमप्पणो त तु ।।
दुरभिणिवेसविमुक्क गाण सम्म खु होदि सदि जहि ।।४।। अन्वय- जीवादीसदुदहण सम्मत्त , त तु अप्पणोरूव । जह्मि सदि णाण खु दुरभिरिणवेसविमुक्कं सम्म होदि।
अर्थ-- जीवादि नव तत्त्वोका यथार्थ श्रद्धान करना सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) है । और वह आत्माका स्वाभाविक रूप है । जिसके होने पर ज्ञान निश्चयसे विपरीत अभिप्राय रहित होता हुआ सम्यक हो जाता है।
प्रश्न १-- सम्यग्दर्शन कितने प्रकारका होता है ?
उत्तर-- सम्यग्दर्शन स्वरूपसे तो एक प्रकारका ही है और वह प्रववत्वव्य है, विन्तु सम्बन्ध, निमित्त आदि भेदसे अनेक प्रकारका होता है । जैसे अन्तरङ्ग बाह्य निमित्तकी दृष्टि से ३ प्रकारका है-- (१) ग्रौपशमिक सम्यक्त्व, (२) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, (३) क्षायिक सम्यक्त्व । सम्बन्धादि दृष्टि से १० प्रकारका है-- (१) प्राज्ञासम्यक्त्व, (२) मार्गसम्यक्त्व, (३) उपदेशसम्यक्त्व, (४) अर्थसम्यक्त्व, (५) बोजसम्यक्त्व, (६) सक्षेपसग्यक्त्व, (७) सूत्रसम्यक्त्व (८) विस्तारसम्यक्त्व, (E) अवगाढसम्यवत्व, (१०) परमावगाढसम्यक्त्व ।
प्रश्न २-- श्रीपशमिक सग्यवत्व किसे कहते है ?
उत्तर- अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, व मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यकप्रकृति- इन ७ प्रकृतियोके उपशम होनेपर जो सम्यक्त्व प्रकट होता है उसे औपशमिक सम्यक्त्व कहते है।
विशेप यह है कि जिनके सम्यक्प्रकृति व सभ्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिकी उद्वेलना हो चुकी है उन जीवोके व अनादिमिथ्यादृष्टि जीवके सभ्यग्मिथ्यात्व व सम्यकप्रकृतिके बिना शेष ५ प्रकृति मोके उपशम होने पर औपशमिक सम्यक्त्व होता है, क्योकि इन जीवोके इन २ प्रकृतियोकी सत्ता ही नहीं है।
प्रश्न ३-क्षापोशमिक सम्यक्त्व किसे कहते है ? उत्तर-- अनन्तानुबन्धी ४ कपाय, मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व, इन ६ प्रकृतियोंका