________________
२१८
द्रव्यसंग्रह -
ह-प्रश्नोत्तरी टीका
૨
गायु, मनुष्याशु, वायु, नामकर्मकी / शुभ प्रकृतियाँ, उच्च गोत्र ये तो पुण्यरूप हैं और बाकी सब पापप्रकृतिया है ।
प्रश्न १ - क्या जीव स्वभावसे पुण्य, पापरूप है ?
उत्तर - परमार्थसे जीव सहज ज्ञान श्रीर श्रानन्दस्वभाव वाला है इसमे तो वन्धमोक्ष
भी विकल्प नही है, फिर पुण्य पापकी तो चर्चा हो वया है ?
प्रश्न २- फिर जीव पुण्यपापरूप कैसे होते हे ?
उत्तर - ग्रनादिवन्ध परम्परागत कर्मके उदयसे जीव पुण्यरूप व पापरूप होते है ।
प्रश्न ३ - पुण्यरूप जीवका क्या लक्षण है ?
उत्तर - कपायकी मन्दता होना, आत्मदृष्टि करना, देव गुरुकी भक्ति करना, देव गुरु सयमका पालन करना, जीवदया करना, परोपकार करना
के वचनोमे प्रीति करना, व्रत तप आदि पुण्यरूप जीवके लक्षण है ।
प्रश्न ४ - पापरूप जीवके लक्षण क्या है ?
उत्तर - कपायकी तीव्रता होना, मोह करना, देव गुस्से विरोध करना, कुगुरु कुदेव की प्रीति करना, हिंसा करना, झूठ बोलना, चुगली निन्दा करना, चोरी डकैती करना, व्यभिचार करना, परिग्रहकी तृष्णा करना, विषयोमे श्रासक्ति करना आदि पापरूप जीवके लक्षण है ।
प्रश्न ५ - पुण्यके कितने भेद है ?
उत्तर-- पु के दो भेद हे - (१) भावपुण्य और (२) द्रव्यपुण्य |
प्रश्न ६ - भावपुण्य किसे कहते है ?
उत्तर- शुभ भावो करि युक्त जीवको अथवा जीवके शुभ भावोको भावपुण्य कहते हैं । प्रश्न ७- द्रव्यपुण्य किसे कहते है ?
उत्तर - साता आदि शुभ फल देनेके निमित्तभूत पुद्गल कर्मप्रकृतियोको द्रव्यपुण्य
कहते है ।
प्रश्न ८ - पुण्न प्रकृतियाँ कितनी है ?
उत्तर-- पुण्य प्रकृतियाँ ६८ है - (१) सातावेदनीय, (२) तिर्यगायु, (३) मनुष्यायु, (४) देवायु, (५) मनुष्यगति, (६) देवगति, (७) पचेन्द्रियजाति, ( ८-१२) पाँच शरीर, (१३१७) पाँच बन्धन, ( १८-२२) पाँच संघात, ( २३ - २५) तीन अगोपाग, (२६) समचतुरस्रमस्थान, (२७) वज्रऋषभ नाराच सहनन, (२८ - ३५) ग्राठ शुभ स्पर्श, (३६ -४०) पांच शुभ रस, (४१-४२) दो शुभ गध, (४३ - ४७ ) पाँच शुभ वर्ण, (४८) मनुष्यगत्यानुपूर्व्यं ( ४६ ) देवगत्यानुपूव्यं, (५०) अगुरुलघु, (५१) परघात, (५२) आतप (५३) उद्योत (५४) उच्छ
"