Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 218
________________ २१० द्रव्यसंग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- अनिष्ट पदार्थोका समागम हो जाने पर भी पूर्व रतिका स्मरण न करते हुये अरति याने विरोध, ग्लानि न करने और प्रात्मसाधनामे बने रहनेको अरतिपरीषहजय कहते है। प्रश्न २७४- स्त्रीपरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर- रूपयौवनगर्वोन्मत्त युवतीके द्वारा एकान्तमे नाना अनुकूल प्रयत्न करने पर भी निर्विकार रहनेको स्त्रीपरीषहजय कहते है । प्रश्न २७५- चर्यापरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर-गुरुजनोकी चिरकाल तक सेवा करनेसे जिनका ज्ञान, ब्रह्मचर्य और वैराग्य दृढ हो गया, ऐसे साधुके गुरु आज्ञासे एकाकी विहार करते हुये परमे काटा, ककड आदि तीक्ष्ण नुकीली चीजके छिद जानेपर भी पूर्वानुभूत सवारीके आरामका स्मरण न करते हुये समतासे वेदनाके सहन कर लेने और प्रात्मचर्याम उद्यत रहनेको चर्यापरीषहजय कहते है । प्रश्न २७६-निषद्यापरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर-भयङ्कर बनमे, कङ्करीले व स्थडिल प्रदेशपर ध्यान करते समय व्याधि, उपसर्ग आदिकी वाधाोको समतासे सहकर आसनसे, कायोत्सर्गसे चलायमान न होने और अपने आपमे स्थित होनेको निषद्यापरीपहजय कहते है। प्रश्न २७७- शय्यापरोपहजय किसे कहते है ? उत्तर-स्वाध्याय आदि आवश्यक कर्तव्योके करनेसे हुये शारीरिक थकानके निराकरणार्थ तिकोने, गठीले, ककरीले आदि भूमि पर एक करवट, दण्डवत् प्रादिसे शयन करते हुये खेद न माननेको शय्यापरीपहजय कहते है । साधु इस समय कोई आकुलता नही करते हैं । जैसे- यह बन हिसक जन्तुनोसे व्याप्त है, जल्दी निकल जाना चाहिये अथवा कब रात खत्म होती है आदि। प्रश्न २७८- आक्रोशपरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर-किसीके द्वारा बाणोकी तरह मर्मभेदी दुर्वचन, गाली आदिके प्रयोग किये जाने पर भी प्रतीकारमे समर्थ होकर भी उन्हे क्षमा कर देने और अपनेमे विकार उत्पन्न न होने देनेको आक्रोशपरीपहजय कहते है। प्रश्न २७६-ववपरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर- किसी चोर, डाकू, बैरी आदिके द्वारा मारे पीटे व प्राणघात किये जानेपर भी अबध्य शुद्धात्मद्रव्यके अनुभवमे स्थिर रहनेको वधपरीपहजय कहते है। प्रश्न २८०- याचनापरिषहजय किसे कहते है ? उत्तर-कितनी ही व्याधि अथवा क्षुवादिकी वेदना होने पर भी औषधि आहार

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