________________
गाया ३५
२०५
विभागका नाम ब्रह्मोत्तर स्वर्ग है । यह कल्प द्वितीय वल्पसे ऊपर पाधा राजू पर्यन्त अवस्थित है । इस कल्पका ब्रह्म नामक एक ही इन्द्र है ।
प्रश्न २४६ - चतुर्थ कल्पकी कैसी रचना है ?
उत्तर - तृतीय कल्पसे ऊपर श्राधा राजू पर्यन्त श्राकाशमे चतुर्थ कल्प है । इसमें दो पटल है । इनके दक्षिण विभागका नाम लान्तव स्वर्ग है व उत्तर विभागका नाम कापिष्ठ स्वर्ग है । इस कल्पका इन्द्र लान्तव नामक एक ही है ।
प्रश्न २४७ - पञ्चम कल्पकी कैसी रचना है ? उत्तर - चतुर्थं कल्पसे ऊपर आधा राजू पर्यन्त पटल एक है । इसके दक्षिण विभागका नाम शुक्र स्वर्ग स्वर्ग है । इसमें शुक्र नामक एक ही इन्द्र है ।
आकाशमे पञ्चम कल्प है । इसमें और उत्तर विभागका नाम महाशुक्र
है
प्रश्न २४८ - छठे कल्पको कैसी रचना है ?
उत्तर- पञ्चम कल्पसे ऊपर ग्राधा राजू पर्यन्त आकाशमें छठा कल्प है । इसमें भी पटल एक है । इसके दक्षिण विभागका नाम शतार स्वर्ग है और उत्तर विभागका नाम सहखार स्वर्ग है । इस कल्पमे शतार नामक एक ही इन्द्र है ।
प्रश्न २४६ - सातवे कल्पकी कैसी रचना है ?
उत्तर—- छठे कल्पसे ऊपर श्राधा राजू पर्यन्त श्राकाशमें सातवा कल्प है । इसमे ३ पटल हैं । जिनके दक्षिण विभागका नाम प्रानत स्वर्ग है और अधिपति आनतनामक इन्द्र है । उत्तर विभागका नाम प्रारणत स्वर्ग है और अधिपति प्राणत इन्द्र है ।
प्रश्न २५० -- प्राठवे कल्पकी कैसी रचना है
उत्तर- सातवें कल्पके ऊपर श्राधा राजू पर्यन्त श्राकाशमे आठवां कल्प है । इसमे ३ पटल है । जिनके दक्षिण विभागका नाम आरण स्वर्ग है और अधिपति आरणनामक इन्द्र
है । उत्तर विभागका नाम अच्युत स्वर्ग है और अधिपति अच्युत इन्द्र है ।
प्रश्न २५१ - ग्रैवेयकविमानोकी कैसी रचना है ?
1
उत्तर- आठवे कल्पके ऊपर १ राजू पर्यन्त आकाशमे ग्रैवेयक, अनुदिश, अनुत्तर व सिद्धशिला एवं सिद्धलोक है । जिसमे ग्रैवेयककी रचना इस प्रकार है - ग्रैवेयकमे पटल & है । भव्य मिथ्यादृष्टि जीव व अभव्य भी ग्रैवेयको तक के देवोमे ही जन्म ले सकते है । किन्तु भव्य जीव दक्षिणेन्द्र, लोकान्तिक देव, लोकपाल व प्रधान दिवपाल नही हो सकते हैं । ग्रैवेयकोमे उत्पत्ति मुनिलिङ्ग धारण करने वाले तपस्वी साधुवोकी ही हो सकती है, चाहे वे द्रव्यलिङ्गी हो या भावली | ग्रैवेयकवासी देव सब अहमिन्द्र है |