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गा ३५ बाहुल्य (मोटाई) एक लाख अस्सी हजार योजन है । इसके भी खरभाग, पकभाग, अब्बहुलभाग, ये तीन भाग है । जिनमे खरभाग व पंकभागमे तो भवनबासी व व्यन्तर देवोके आवास है, नीचेके अब्बहुलभागके बिलोमे नारक जीव है । इससे नीचे एक राजू आकाश जाकर नीचे शर्कराप्रभा नामकी दूसरी पृथ्वी ३२ हजार योजन मोटी है । इसके नीचे एक राजू आकाश जाकर इसके नीचे बालुकाप्रभा नामकी तीसरी पृथ्वी २८ हजार योजन मोटी है । इसके नीचे एक राजू आकाश जाकर पकप्रभा नामकी २४ हजार योजन मोटी चौथी पृथ्वी है। इसके नीचे एक राजू आकाश जाकर २० हजार योजन मोटी धूमप्रभा नामकी पांचवी पृथ्वी है। इसके नीचे एक राजू आकाश जाकर १६ हजार योजन मोटी तम प्रभा नामकी छठवी पृथ्वी है । इसके नीचे एक राजू आकाश जाकर ८ हजार योजन मोटी महातम नामकी ७वी पृथ्वी है। इसके नीचे एक राजू प्रमाण आकाश है।
प्रश्न २२८- क्या पृथ्वीका माप ७ राजू क्षेत्रसे अतिरिक्त है ?
उत्तर-पृथ्वी राजूसे अतिरिक्त क्षेत्र नहीं है, किन्तु राजूके सामने पृथ्वीका बाहुल्य न कुछसा है, इसलिये नीचे एक एक राजू आकाशका वर्णन किया है।
प्रश्न २२६- इन पृथ्वियोके बिल किस प्रकार है ?
उत्तर- इन पृथ्वियोके इस प्रकार पटल (बिलरचना भाग) है- पहिलीमे १३, दूसरी में ११, तीसरीमे ६, चौथीमे ७, पांचवीमे ५, छठीमे ३, सातवीमे १ । प्रत्येक पटलमे बिल है । पृथ्वीके भीतर ही भीतर यह क्षेत्र है । इन स्थानोका कही भी मुख नही है, जो पृथ्वीके ऊपर हो । इसलिये इन्हे बिल कहते है।
प्रश्न २३०- ये बिल कितने बडे है ?
उत्तर-कोई बिल सख्यात हजार योजनका है और कोई बिल असख्यात हजार योजनका है।
प्रश्न २३१- किस पृथ्वीमे कितने बिल है ?
उत्तर- पहिलीमे ३० लाख बिल है । दूसरीमे २५ लाख, तीसरीमे १५ लाख, चौथी मे १० लाख, पाँचवीमे ३ लाख, छठीमे ६६६६५ व सातवीमे केवल ५ बिल है । इन सबका वर्णन धर्मग्रन्थोसे देख लेना चाहिये । विस्तार भयसे यहाँ नही लिखते है।
प्रश्न २३२-- इन बिलोमे रहने वाले नारकी कैसे जीव होते है ?
उत्तर-- जो जीव जीवहिसक, चुगल, दगाबाज, 'चोर, डाकू, व्यभिचारो और अधिक तृष्णा वाले होते है वे मरकर नरकगतिमे जन्म लेते है । इन नारकियोको शीत, उष्ण, भख. प्यास आदिकी तीव्र वेदना रहती है । वेदना मेटनेका वहाँ जरा भी साधन नही है। इनकी खोटी देह होती है । ये परस्पर लड़ते, काटते, छेदते रहते है । इनका शरीर ही हथियार बन