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वर्तनका है । ऐसे-ऐसे न त भवपरिवर्तनकाल जीवके व्यतीत हो गये है ।
प्रश्न १६६ - श्रनादिनित्यनिगोदके यह परिवर्तन कैसे सभव हो सकता ? उत्तर -- श्रनादिनित्य निगोदके यह भवपरिवर्तन तो नही होता, किन्तु अन्य जीवके अनन्त भवपरिवर्तनोमे जितना काल व्यतीत हुआ उतना काल इसके भी व्यतीत हो गया है ।
प्रश्न १६७ - भानपरिवर्तनका क्या स्वरूप है ?
उत्तर --- कर्मोंकी यथासम्भव जघन्यस्थिति से लेकर उत्कृष्टस्थितिके वन्धके कारणभूत भावका क्रमिक परिवर्तन भावरिवर्तन है । वह इस प्रकार होता है - कर्मोकी एक स्थितिबन्धस्थान होनेके लिये या वढनेके लिये प्रसख्यात लोक प्रमाण असख्यात कषायाध्यवसायस्थान हो जाते है । एक कपायाध्वसायस्थान होनेके लिये श्रसख्यात लोकप्रमाण, श्रसख्यात अनुभागवाध्यवसायस्थान हो जाते है । एक अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान होनेके लिये श्रेणीके सख्यातवें भाग प्रमाण असख्यात योगस्थान हो जाते है ।
अब प्रकृत क्रमपरिवर्तन देखें- जैसे एक जीवके ज्ञानावरणकर्मकी जघन्यस्थितिका बन्ध हुआ । इसके योग्य जघन्य योगस्थान, जघन्य अनुभाग बन्धाध्यवसायस्थान व जघन्य कषायाध्यवसायस्थान हुए । इसके आगे असख्यान योगस्थान होनेपर एक अनुभागबन्धावसायस्थान बढा व इस रीति से असंख्यात अनुभागन वाध्यवसायस्थान होनेपर एक कषायाध्यवमायस्थान बढा श्रौर इसी रीतिसे असख्यात कपायाध्यवसायस्थान होनेपर ज्ञानावरणकर्मका श्रागेका एक स्थितिबधस्थान हुआ । इसी प्रकार योगस्थान अनुभागबचाध्यवस्थान- कषायाध्यवसायस्थान क्रमसे बढाकर स्थितिस्थान बढाया । जब ज्ञानावरणको उत्कृष्ट स्थितिका बन्धस्थान बघ गया तब ज्ञानावरणसम्बन्धी स्थितिस्थानोका विवरण हुआ, इसी प्रकार यथासम्भव सब कर्मोकी जघन्यस्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थितिपर्यन्त ले जाये । इस सबको एक भावपरिवर्तन कहते है । इसमे जितना काल लगता है वह भावपरिवर्तनका काल है । ऐसे-ऐसे अनन्त भावपरिवर्तनकाल जीवके हुए है ।
प्रश्न १६८ - अनादिनित्यनिगोद जीवके भावपरिवर्तन कैसे सम्भव ?
द्रव्यसंग्रह -- पश्नोत्तरी टीका
उत्तर - कर्मो की यथासभव उत्कृष्ट स्थितिबन्धके योग्य द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, प्रसज्ञीपञ्चेन्द्रिय व सज्ञीपचेन्द्रियका भव प्राप्त न होनेसे सब स्थितिस्थान न हो सकनेसे इन निगोद जीवोके यद्यपि यह भावपरिवर्तन नही होता है तथापि श्रन्य जीवोका इसमे जितना काल व्यतीत हुआ है उतना काल निगोद जीवोका भी व्यतीत हुआ है ।
प्रश्न १६६ - इन पाँच प्रकारके ससारोका काल क्या एकसा है या होनाधिक ? उत्तर- द्रव्यपरिवर्तन से अनन्तगुरणा काल क्षेत्रपरिवर्तनका है । क्षेत्रपरिवर्तन से श्रनन्त गुणाकाल कालपरिवर्तनका है, कालपरिवर्तन से अनन्तगुण। काल भवपरिवर्तनका है और भवपरिवर्तन से अनन्तगुणा काल भावपरिवर्तनका है ।