Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 201
________________ गाथा ३५ १६३ ग्रहणकी रीति पूर्वक गृहीतवर्गरणाश्रोको फिर ग्रहण किया, इसी रीतिसे होते-होते जब अनंतare गृहोगा का ग्रहरण हो चुका तब नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन के ४ भागोमे से एक भाग हो चुकता है । इस भागका नाम है अगृहीतमिश्रगृहीतक्रमग्रहण । फिर उस जीवने मिश्रवर्गणात्रोको ग्रहण किया । ग्रनन्त बार मिश्रग्रहण होनेपर एक बार गृहीतवर्गको ग्रहण किया । पश्चात् अनन्त मिश्रग्रहण होनेपर प्रगृहीतवर्गगावो को ग्रहण किया । इस रीति से अनन्त बार अगृहीतवर्गरणाओको ग्रहण कर चुकनेपर एक बार गृहीताको ग्रहण किया । मिश्रश्रगृहोतग्रहण क्रमपूर्वक गृहीतवर्गणावोका जब अनन्त बार ग्रहण हो चुकता है तब नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनके दो भाग समाप्त हो चुकते है । इस द्वितीय भागका नाम मिश्र श्रगृहीतगृहीतकर्म ग्रहण है । फिर उस जीवने मिश्रवणाश्रोको ग्रहण किया, अनन्त बार मिश्रवर्गणाश्रोके ग्रहण करनेपर एक बार गृहीतवर्गेणाओको ग्रहण किया । फिर अनन्त बार मिश्रग्रहण के बाद एक बार गृहीतवरणाको ग्रहण किया । इस रीतिसे मिश्रगृहीत ग्रहणपूर्वक अनत बार गृहीतवर्गवोका ग्रहण हो चुकनेपर एक बार प्रगृहीतवर्गणा ओवा ग्रहण किया । इसी रीतिके होते हो जब अनन्त बार ग्रगृहीतवर्गणा प्रोको ग्रहण कर चुकता है तब नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनके ३ भाग समाप्त हो जाते है । इस तृतीय भागका नाम मिश्रगृहीत अगृहीतकर्मग्रहण है । फिर उस जीवने गृहीतनो कर्म वर्गणावोको ग्रहण किया, अनन्त बार गृहीतवर्गणाश्रो को ग्रहण कर चुकनेपर एक बार मिश्रवर्गरणाश्रोको ग्रहण किया । अनन्त बार गृहीत - वर्गरणाश्रोको ग्रहण कर चुकनेपर फिर एक बार मिश्रवर्गणानोको ग्रहण किया । इस रीति से अनन्त बार मिश्रवणाम्रो के ग्रहण हो चुकनेपर एक बार अगृहीतवर्गणात्रोको ग्रहण किया । इसी प्रकार गृहीत मिश्र श्रगृहीतग्रहणपूर्वक जब अनन्त बार ग्रगृहीतनो कर्म वर्गणाओका ग्रहण हो चुकता है तब नोकर्मद्रव्य परिवर्तनका चौथा भाग समाप्त हो जाता है । इस भागका नाम गृहीतमिश्रगृहीतकर्मग्रहण है । इसके पश्चात् इस नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनके प्रारभके प्रथम समयमे जिस भाव वाले स्पर्श रस ग व युक्त नोकर्मवगंगाप्रोको ग्रहण किया वह शुद्ध गृहीतनोकर्मद्रव्य जब इस जीवके ग्रहणमे आ जाय तब एक नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन पूरा होता है । इस एक परिवर्तनमे प्रारम्भसे लेकर अन्त तक जितना काल लगता है उतना काल व्यतीत हो जाता है । इस क्रमके विरुद्ध प्रनन्तो बार यथा तथा वर्गरणावोका ग्रहण होता रहता है वह सब अलग है । ऐसे-ऐसे अनन्त नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन भी इस जीवके हो गये है । प्रश्न १८८-- कर्मद्रव्यपरिवर्तनका समय कितना है ? उत्तर-- नोकर्मबर्गरणाओके स्थानपर कर्मवर्गरणावोका कहकर कर्मद्रव्य परिवर्तनका

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