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गाथा ३४ ... सम्यक्त्वमे मिथ्यात्वभाव है नही, अतएव अशुभोपयोगकी मन्दता होनेसे इन प्रकृतियोका यहाँ सवर होता है।
प्रश्न ५४- मिश्रसम्यक्त्व गुणस्थानमे कितनी प्रकृतियोका सवर होता है ?
उत्तर- तीसरे गुणस्थानमे ४१ प्रकृतियोका संवर होता है। इनमेसे सोलह प्रकृतियां तो पूर्व सवृत है, बाकी २५ प्रकृतिया ये है - (१) निद्रानिद्रा, (२) प्रचलाप्रचला, (३) स्त्यानगृद्धि, (४) अनन्तानुबधी क्रोध, (५) अन० मान, (६) अन० माया, (७) अन० लोभ, (८) स्त्रीवेद, (6) तिर्यगायु, (१०) तिर्यग्गति, (११) न्यग्रोधपरिमडलसस्थान, (१२) स्वातिसंस्थान, (१३) वामनसंस्थान, (१४) कुब्जकसंस्थान, (१५) वज्रनाराचसहनन, (१६) नाराचसहनन, (१७) अर्द्धनाराचसहनन, (१८) कील कसंहनन, (१६) तिर्यग्गत्यानुपूर्व्य, (२०) उद्योत, (२१) अप्रशस्तविहायोगति, (२२) दुर्भग, (२३) दुस्वर, (२४) अनादेय और (२५) नीचगोत्र ।
प्रश्न ५५- इन २५ प्रकृतियोका मिश्रसम्यक्त्व गुणस्थानमे क्यो सवर होता ?
उत्तर- इन पच्चीस प्रकृतियोके बन्धका कारण अनन्तानुबन्धी कषायका उदय है । इस तीसरे गुणस्थानमे अनन्तानुबधी कपाय और मिथ्यात्व नही है, अतः इन प्रकृतियोंके प्रास्रवका कारण न होनेसे सम्वर हो जाता है।
प्रश्न ५६-अनन्तानुबधी कषाय यहा क्यो नही होती ?
उत्तर- सम्यग्मिथ्यात्व परिणामके होनेपर अशुभोपयोगकी अत्यन्त मन्दता होनेसे अनन्तानुबन्धी कषाय हो नहीं सकती।।
प्रश्न ५७- अविरत सम्यक्त्वगुणस्थानमे कितनी प्रकृतियोका सम्वर होता है ?
उत्तर-अविरत सम्यक्त्व नामक चौथे गुणस्थानमे पूर्वोक्त ४१ प्रकृतियोका संवर होता है । यहां इस सवरका कारण सम्यक्त्वपरिणाम है । इस गुणस्थानमे अनतानुबधी कषाय ४ मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, इन सात प्रकृतियोके उपशम, क्षय या क्षयोपशम के कारण अशुभोपयोगका प्रभाव हो जाता है और शुद्धोपयोगसाधक शुभोपयोग प्रकट हो जाता है।
प्रश्न ५८-देशविरत गुणस्थानमे कितनी प्रकृतियोका संवर होता है ?
उत्तर-देशविरत गुणस्थानमे ५१ प्रकृतियोका सम्वर होता है । इनमे ४१ तो पूर्व सवृत है और १० प्रकृतिया ये है—(१-४) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, (५) मनुष्यायु, (६) मनुष्यगति, (७) औदारिकशरीर, (८) औदारिक अङ्गोपाङ्ग, (९) वज्रः ऋषभनाराचसहनन और (१०) मनुष्यगत्यानुपूर्व्य ।
प्रश्न ५६---देशविरतमे इन १० प्रकृतियोका सवर क्यो हो जाता है ?