________________
द्व्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका भावपूर्वक भोजन करनेको अगारदोष कहते है।
प्रश्न ११३--धूमदोप नामक भुक्तिदोष किसे कहते है ?
उत्तर-यह वस्तु अच्छी नही बनी, अनिष्ट है, इस प्रकार ग्लानि करते हुए भोजन करनेको धूमदोप कहते है।
प्रश्न ११४-सयोजना नामक भुक्तिदोप किसे कहते है ?
उत्तर-गर्म और ठडा, चिकना और रूखा अथवा आयुर्वेदमे बताये गये परस्पर विरद्ध पदार्थोको मिलाकर खाना सो सयोजना नामक दोप है ।
प्रश्न ११५--अतिमात्र नामक भुक्तिदोप किसे कहते है ?
उत्तर-भोजनका जो परिमाण बताया गया है उसका उल्लघन करके उस परिमाण से अधिक आहार करनेको अतिमात्र नामक भुक्तिदोप कहते है ।
प्रश्न ११६-आहारका परिमारण क्या है ?
उत्तर- उदरके दो भाग याने भूखके २ भाग अर्थात् प्राधे भागको भोजनसे पूर्ण करना चाहिये और एक भागको नलसे पूर्ण करना चाहिये और एक भागको खाली रखना चाहिये।
प्रश्न ११७- मलदोप किसे कहते है ?
उत्तर- जिनसे छू जानेपर, मिल जानेपर आहार ग्रहण करनेके योग्य न रहे उसे मल कहते है और मलके दोषको मलदोष कहते है।
प्रश्न ११८-मल कौन-कौनसे है ?
उत्तर-- (१) पूय याने पीव, (२) रुधिर, (३) मौम, (४) हड्डी, (५) चर्म, (६) नख, (७) केश, (८) मृतविकलत्रय याने मरा हुआ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव, (६) सूरण प्रादि कन्द, (१०) जिसमे अकुर होने वाला हो ऐमा बीज, (११) मूली, अदरख आदि मूल, (१२) बेर आदि तुच्छ फल, (१३) करण और (१४) भीतर कच्चा व बाहर पक्का ऐसा चावल आदि कुण्ड ।
प्रश्न ११६-- उक्त १४ मलोमे से किस मलस्पर्शसे कितना दोष होता है ?
उत्तर- पीव, रुधिर, मास, हड्डी और चर्म, इनसे ससक्त आहार जब प्रतीत हो तब आहार नो छोड ही देवे और विधिवत् प्रायश्चित भी ग्रहण करे ।
नखसे ससक्त आहार हो तो आहारको छोड देवे तथा किचित् प्रायश्चित भी करे । यदि केश या मृत विक्लत्रयसे ससक्त आहार हो तो उस आहारको छोड देवे ।
यदि वन्द, बीज, मूल, फल, कण और इनसे सस्पृष्ट आहार हो तो इन्हे निकालकर दूर कर देवे । कदाचित् इनका अलग करना अशक्य हो तो उस प्राहारको छोड़ देना चाहिये ।