________________
गाथा ३५
१८३ उत्तर-जिसका वर्ण, गन्ध, रस न पलटा हो, ऐसे चूर्णमिश्रित जलको चने, चावल आदिके धोवनके जलको ग्रहण करना, सो अपरिणत दोष है ।
प्रश्न १०७-व्यवहरण नामक अशनदोप किसे कहते है ?
उत्तर- दातार अपने लटके हुये वस्त्रको यत्नाचाररहित खीचकर व वर्तन, चौकी आदिको घसीटकर और भी यत्नाचार रहित होकर आहार देवे उस आहारके ग्रहण करनेको व्यवहरणदोष कहते है।
प्रश्न १०८-दायकदोष नामक अशनदोष किसे कहते है । ___ उत्तर-जिनका दिया हुआ आहार साधुको ग्रहण करना योग्य नही उनके दिये हुए माहारके ग्रहण करनेको दायकदोष कहते है । अयोग्य दायक ये है-मद्यपायी, रोगपीड़ित, पिशाचमूच्छित, रजस्वला, बच्चेका प्रसव करने वाली (४० दिन तक), वमन करके आया हुआ, शरीरमे तेल लगा रखने वाला, भीतकी प्राडमे स्थित, पात्रके स्थानसे नीचे या ऊँचे प्रदेशपर स्थित, नपुसक, जातिच्युत, पतित, मूत्रक्षेपण करके आयो हो, नग्न, वेश्या, सन्यासलिंगधारण करने वाली, अति बाला (८ वर्पसे कम), वृद्धा, गर्भिणी (५ माससे ऊपर गर्भ वाली), खाती हुई, अन्वा, बैठी हुई, अग्नि जलाने वाला, अग्नि बुझाने वाला, अग्निको भस्म से ढाकने वाला, अग्नि घिट्टने वाला, मकान लीपने वाला, एक वस्त्रधारी, दूध पीते बच्चेको छोडकर आने वालो, बच्चोको नहलाने वालो आदि दातार पात्रदानके अयोग्य है।
उक्त दातारोमे कोई विशेषण तो केवल स्त्रियोमे घटित होते है, कोई विशेषण स्त्रीपुरुष दोनोमे घटित होते है, इसलिये शब्दलिगपर ध्यान देकर यथासभव स्त्री-पुरुषोमे विशेषण लगा लेना चाहिये।
प्रश्न १०६-लिप्त नामक अशनदोष किसे कहते है ?
उत्तर-गेरु, खडिया, पाटा, हरित, अप्रामुक जल आदिसे भीगे हुए हाथ या वर्तन द्वारा भोजनके ग्रहण करनेको लिप्तदोप कहते है ।
प्रश्न ११०- विमिश्रदोप नामक अशनदोष किसे कहते है ?
उत्तर- जिस भोजनमे सचित्त पृथ्वी, जल, वीज, हरित और जीवित त्रस मिले हए हो उस भोजनको विमिश्रदोषसे दूपित कहा है।
प्रश्न १११- भुक्तिदोष ४ कौन-कौनसे है ?
उत्तर-(१) अगार, (२) धूम्र, (३) संयोजना और (४) अनिमात्र, ये चार महादोष है।
प्रश्न ११२- प्रगार नामक भुक्तिदोप किसे कहते है ? उत्तर- यह वस्तु अच्छी है, स्वादिष्ट है, कुछ और मिले, इस प्रकार प्रत्यासक्ति